हरियाणा के भोंडसी पुलिस ट्रेनिंग सेंटर से हाल ही में 783 नए कांस्टेबल पास आउट हुए। लेकिन यह केवल एक नियमित पासिंग आउट परेड नहीं थी — इसने एक नया विमर्श जन्म दिया है। कारण? इनमें से एक हैं PhD धारक, और उनके साथ हैं दर्जनों MBA, MTech, BTech, MCA, B.Ed, और 200 से अधिक स्नातकोत्तर युवक-युवतियाँ।
🎓 जब उच्च शिक्षा वाले करें निम्न पद की नौकरी
कांस्टेबल पद के लिए न्यूनतम योग्यता मैट्रिक पास है, लेकिन इन युवाओं ने इंजीनियरिंग, कानून, शिक्षा और शोध जैसे क्षेत्रों में डिग्रियां ली हैं। यह दिखाता है कि बेरोज़गारी की समस्या कितनी गंभीर है। आज पढ़े-लिखे युवा सरकारी नौकरी को न केवल आर्थिक सुरक्षा बल्कि सामाजिक सम्मान का भी साधन मानते हैं — भले ही वह उनकी योग्यता से नीचे का पद क्यों न हो।

🇮🇳 हरियाणा में वर्दी का आकर्षण
हरियाणा, जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय सेना का एक प्रमुख भर्ती केंद्र रहा है, में वर्दी का गौरव और सम्मान गहराई से जुड़ा हुआ है। कई NGO और रिटायर्ड सैनिकों द्वारा चलाए जा रहे प्रशिक्षण केंद्र इस भावना को मजबूत करते हैं। ऐसे में यह आश्चर्य नहीं कि पुलिस और सशस्त्र बलों की नौकरी को यहां विशेष महत्व दिया जाता है।
💼 लेकिन असली कारण है रोजगार का संकट
यह “वर्दी का आकर्षण” जितना सांस्कृतिक है, उतना ही आर्थिक मजबूरी से भी जुड़ा हुआ है। निजी क्षेत्र में अवसरों की कमी, और योग्यता के अनुसार रोजगार न मिलना, युवाओं को किसी भी सरकारी नौकरी की ओर मोड़ रहा है। और जब चयन प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होती है, तो योग्य उम्मीदवार अवसर को हाथ से नहीं जाने देते।
👮♂️ बदलाव का संकेत
इस स्थिति में एक उज्ज्वल संभावना भी छिपी है — जब शिक्षित और तकनीकी रूप से दक्ष युवा पुलिस बल में शामिल होंगे, तो व्यवस्था का चरित्र और कार्यशैली दोनों बदल सकते हैं। आज के अपराध — जैसे साइबर क्राइम, डिजिटल धोखाधड़ी, वित्तीय घोटाले — शारीरिक शक्ति नहीं, मानसिक चतुराई और तकनीकी समझ की मांग करते हैं। ऐसे में PhD और MTech धारी कांस्टेबल ही भविष्य की आवश्यकता हैं।
🧱 पुरानी व्यवस्थाओं को तोड़ने का समय
भारत में पुलिस भर्ती की प्रणाली कड़ी पदानुक्रम (hierarchy) पर आधारित है। कांस्टेबल और IPS अधिकारी के बीच की खाई अब विकास में बाधा बन चुकी है। पश्चिमी देशों में, जैसे अमेरिका या ब्रिटेन, सभी पुलिसकर्मी कांस्टेबल स्तर से शुरुआत करते हैं और योग्यता और सेवा के आधार पर ऊपर बढ़ते हैं। यह न केवल सहयोग बढ़ाता है, बल्कि सम्मान और आत्मविश्वास को भी पोषित करता है।
आज जब एक कांस्टेबल अपने अधिकारी से अधिक शिक्षित है, तो उसे “आर्डरली” या “हुक्म का गुलाम” समझना न केवल अनुचित है, बल्कि पुलिस व्यवस्था के लिए भी हानिकारक है।
🔚 निष्कर्ष: वर्दी में बदलाव का बीज
हरियाणा में उच्च शिक्षित युवाओं का कांस्टेबल बनना एक ओर जहां रोजगार संकट की कड़वी सच्चाई उजागर करता है, वहीं यह पुलिस बल के भविष्य की नई दिशा का संकेत भी है।
यह समय है जब सरकारें न केवल रोज़गार सृजन को प्राथमिकता दें, बल्कि पुलिस बल में ऐसे शिक्षित युवाओं को प्रशिक्षण, पदोन्नति और नेतृत्व के अवसर भी दें।
शायद वह दिन दूर नहीं, जब ‘पहले लाठी, फिर सवाल’ की सोच बदलकर ‘पहले तर्क, फिर कार्रवाई’ का नया युग शुरू होगा।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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