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Saturday, July 19, 2025, 1:14 am

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केरल के लिए कड़वी दवा — जब सच्चाई बोलना बन जाए अपराध

केरल
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केरल, जो लंबे समय से अपने मॉडल सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र के लिए देश-विदेश में प्रशंसा पाता रहा है, आज एक असहज सच्चाई से दो-चार हो रहा है। यह सच्चाई किसी विपक्षी नेता ने नहीं, बल्कि सरकारी मेडिकल कॉलेज के एक वरिष्ठ और प्रतिष्ठित डॉक्टर ने उजागर की है।

👨‍⚕️ डॉ. हैरिस चिरक्कल की पुकार

डॉ. हैरिस चिरक्कल, त्रिवेंद्रम के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग प्रमुख हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा कि अस्पताल में मेडिकल उपकरणों की भारी कमी के कारण 75% से अधिक इलेक्टिव सर्जरी टाली जा रही हैं, और मरीजों को कई बार अपने मेडिकल सामान खुद खरीदने पड़ रहे हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि सप्लाई चेन में भ्रष्टाचार है और यदि सतर्कता जांच हो, तो कई अनियमितताएँ उजागर हो सकती हैं।

यह पोस्ट भले ही उन्होंने बाद में हटा दी, लेकिन तब तक यह एक राजनीतिक भूचाल बन चुकी थी।

⚠️ सरकार की प्रतिक्रिया: इनकार और हमला

डॉ. हैरिस की बातों को विपक्षी कांग्रेस ने तुरंत लपक लिया और केरल की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को ‘वेंटिलेटर सपोर्ट पर’ बता दिया। इसके बाद सरकार और CPM का रुख बेहद रक्षात्मक और आक्रामक बन गया।

स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने पहले तो डॉ. हैरिस की प्रशंसा की, लेकिन फिर सरकार और पार्टी ने उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया। यहां तक कि उन्हें मानसिक रूप से अस्थिर कहने तक की कोशिश हुई।

यह कोई पहली बार नहीं है जब वामपंथी सरकार ने किसी आलोचक को विरोधी करार देकर चुप कराने की कोशिश की हो। आलोचना करने वाला अक्सर एंटी-CPM करार दे दिया जाता है — भले ही वह प्रणाली का हिस्सा हो और सुधार की भावना से बात कर रहा हो।

🔍 सच्चाई का आईना

डॉ. हैरिस खुद मानते हैं कि उन्होंने “प्रोफेशनल सुसाइड” कर लिया है, लेकिन वे अब और चुप नहीं रह सकते थे क्योंकि वे जनस्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्ध हैं। यह एक आत्मा की पुकार है — किसी राजनीतिक साजिश का हिस्सा नहीं।

विडंबना यह है कि जिन अस्पतालों की हालत सुधारी जानी चाहिए, वहां मुख्यमंत्री या मंत्रीगण इलाज कराने नहीं जाते — वे निजी अस्पतालों या विदेश का रुख करते हैं। यदि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी ही उत्कृष्ट है, तो उसमें नेताओं का विश्वास क्यों नहीं?

📉 आंकड़े बोलते हैं

एक कैग रिपोर्ट के अनुसार, त्रिवेंद्रम ज़िले में एक डॉक्टर पर औसतन 5,158 मरीज हैं। जबकि हर साल 4,000 से अधिक डॉक्टर राज्य के 33 मेडिकल कॉलेजों से स्नातक होते हैं। फिर सवाल उठता है — ये डॉक्टर कहां जा रहे हैं? क्यों सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की भारी कमी है?

साथ ही, हाल के वर्षों में कई गंभीर लापरवाहियों की घटनाएँ सामने आई हैं। कोझीकोड मेडिकल कॉलेज में ICU में मरीज से बलात्कार की घटना अभी भूली नहीं गई है।

🩺 सुधार की दिशा में कदम

केरल की निपाह और कोविड-19 महामारी से लड़ाई की तारीफ हुई है — लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। व्यवस्था में लगातार गिरावट और प्रशासनिक अहंकार एक घातक संयोजन बन सकता है।

सरकार को चाहिए कि:

  1. स्वास्थ्य व्यवस्था का स्वतंत्र ऑडिट करवाया जाए।
  2. जिम्मेदार डॉक्टरों की बातों को गंभीरता से लिया जाए, न कि उन्हें डराया या अपमानित किया जाए।
  3. सप्लाई चेन में पारदर्शिता लाई जाए और भ्रष्टाचार पर त्वरित कार्रवाई हो।
  4. राजनीतिक प्रतिरोध की बजाय आत्मनिरीक्षण किया जाए।

🔚 निष्कर्ष: आलोचना से डर नहीं, दिशा मिलती है

केरल का स्वास्थ्य मॉडल अब भी देश के कई हिस्सों से बेहतर है, लेकिन यह समय आत्मसंतोष का नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्निर्माण का है। डॉ. हैरिस जैसे लोग व्यवस्था को आईना दिखाते हैं, उसे तोड़ते नहीं। ऐसे लोगों को दुश्मन नहीं, सहयोगी समझना होगा।

अगर हर बार सच बोलने वाला चुप कर दिया जाएगा, तो अगली बार शायद कोई नहीं बोलेगा। और तब सिर्फ अस्पताल ही नहीं, पूरी व्यवस्था ICU में होगी।

 


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