हर साल पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव होती है, बल्कि यह प्रशासनिक क्षमता की परीक्षा भी बन जाती है। इस वर्ष भी कुछ अलग नहीं हुआ।
जहां लाखों श्रद्धालु आस्था और भक्ति में लीन थे, वहीं अव्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही ने तीन मासूम जिंदगियों की आहुति ले ली।
🚨 इतिहास दोहराया गया, पर सबक फिर भी नहीं सीखा
42 वर्षीय बसंती साहू और उनके परिवार की चीखें उस रात किसी ने नहीं सुनीं। न पुलिस थी, न एम्बुलेंस, न कोई चिकित्सा दल। श्रद्धालु ही श्रद्धालुओं के लिए रक्षक बने। यह पहली बार नहीं है जब रथ यात्रा में जानें गई हों, परंतु यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हर हादसे के बाद भी प्रशासन केवल मुआवज़े और जांच तक सीमित रह जाता है।

📉 अवसर नहीं, व्यवस्था चाहिए
पुरी की रथ यात्रा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक विरासत का सजीव रूप है। हर साल बढ़ती भीड़, तकनीकी संसाधन, सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रबंधन की बढ़ती मांग के बावजूद, सरकारें सिर्फ “जुगरनॉट” जैसी ताकतवर श्रद्धा को नियोजित ढंग से संभाल नहीं पा रहीं।
भव्यता के बीच बिखरी नियोजन की कमजोरी और अदूरदर्शिता, लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ करती है।
🧭 अनुभवहीन नेतृत्व और नीतिगत भ्रम
मुख्यमंत्री मोहन माजhi ने इस साल की अव्यवस्था के लिए माफी तो मांगी, लेकिन माफियों से जानें वापस नहीं आतीं।
यह बात भी चिंताजनक है कि उनके मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्य प्रशासनिक अनुभव से कोरे हैं। ऐसे में जब सबसे बड़ी रथ यात्रा का आयोजन हो, तब अधिकारियों का अनुभवहीन होना खुद एक आपदा को न्योता देना है।
🎭 भक्ति में भोगवाद की घुसपैठ
इस बार आलोचना का एक और कारण बना बेतहाशा VIP पासों का वितरण, जिसने आम श्रद्धालुओं को पीछे धकेल दिया और अव्यवस्था को जन्म दिया।
जब सत्ता के करीबी लोग विशेषाधिकारों के साथ धार्मिक आयोजनों पर कब्जा जमाते हैं, तब यह लोक आस्था के साथ घोर अन्याय बन जाता है।
📌 केवल व्यवस्था नहीं, संवेदना भी जरूरी है
रथ यात्रा केवल उत्सव नहीं, जगन्नाथ संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन है। इसमें किसी भी तरह की चूक न केवल जानलेवा साबित हो सकती है, बल्कि करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं को गहरा आघात पहुंचा सकती है।
प्रशासनिक गलती को केवल एक ‘इंसानी चूक’ कहकर टालना उचित नहीं। यह आस्था और उत्तरदायित्व दोनों की परीक्षा है।
🔚 निष्कर्ष: सुधार नहीं हुआ, तो श्रद्धा भी टूटेगी
अगर सरकारों ने अभी भी नहीं सीखा, तो अगली दुर्घटना केवल ‘किस्मत’ नहीं, सिस्टम की हत्या कहलाएगी।
पुरी की रथ यात्रा को केवल दिखावटी सुरक्षा और VIP दर्शन से नहीं, बल्कि गंभीर नियोजन, अनुभवी नेतृत्व और श्रद्धालुओं की गरिमा को प्राथमिकता देने से सुरक्षित और सफल बनाया जा सकता है।
श्रद्धा का सम्मान तभी होगा, जब शासन सक्षम, संवेदनशील और जवाबदेह होगा।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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