व्हाइट हाउस में मुनीर की आवभगत और दिल्ली की रणनीतिक चूक
मानना पड़ेगा — नई दिल्ली बुरी तरह गच्चा खा गई।
पहलगाम की घटना के बाद जब भारत भावनाओं के तूफान में बहकर पाकिस्तान के जाल में जा फंसा, तब शायद किसी ने यह नहीं सोचा था कि वाशिंगटन में कुछ और ही प्रेम-कहानी लिखी जा रही है।
शशि थरूर की अगुवाई में जो प्रतिनिधिमंडल अमेरिका पहुंचा था, वह गुस्से का सही संदेश लेकर गया था — ऑपरेशन सिंधूर के बाद की नाराज़गी को राजनयिक भाषा में पहुंचाने के लिए। लेकिन लगता है यह पूरी कवायद एक भारी फ्लॉप शो में तब्दील हो गई।

क्योंकि उसी दौरान व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप और फील्ड मार्शल सैयद आसिम मुनीर के बीच जो “रणनीतिक रोमांस” चल रहा था, वो किसी शेक्सपियर नहीं, बल्कि एलिज़ाबेथ बैरेट ब्राउनिंग की प्रेम कविता जैसा दृश्य पेश कर रहा था।
पेंटागन, स्टेट डिपार्टमेंट, फ्लोरिडा का सेंट्रल कमांड — हर जगह मुनीर की आवभगत में अमेरिका ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
💼 लंच डिप्लोमेसी और लव स्टोरीज़
व्हाइट हाउस की कैबिनेट मेज़ पर, ट्रंप और मुनीर के बीच ‘आंखों ही आंखों में बातें’, और सज-धज के खड़े ट्रे-सर्वर, जो “वर्किंग लंच” के नाम पर मानो प्रेम-पात्र लिए खड़े थे। ट्रंप की आंखें मुनीर की सजग मुस्कान में डूबी हुई थीं, और लगता था मानो ट्रंप उन्हें अमेरिका का “प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम” देने का मन बना चुके हों — वह भी एल्विस प्रेस्ली और पोप जॉन XXIII की श्रेणी में।
इस बीच भारत से आई शशि थरूर की टीम को शायद पद्मश्री से ही संतोष करना पड़ेगा, क्योंकि वह मुनीर को “ग्लोबल आतंकवादी नंबर वन” घोषित करवाने में असफल रही। भारतीय करदाताओं का पैसा एक बार फिर खो गया — इस बार शब्दों के सागर में।
🗣 मोदी की पुकार, गूंजती नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G-7 के आउटरीच सत्र में जो भावुक भाषण दिया, वह आतंकवाद के खिलाफ था — वो आतंकवाद जो पड़ोसी देशों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। पर अफ़सोस, यह भाषण NH-44 जितना लंबा होकर भी असरहीन रहा — क्योंकि ट्रंप को तो पाकिस्तान से इश्क़ हो गया है।
मोदी पूछते रह गए:
- क्या आतंकवाद पर हम वास्तव में गंभीर हैं?
- क्या केवल तभी जागेंगे जब हमारे दरवाजे पर बम फटेगा?
लेकिन ट्रंप शायद प्रेम में बहक गए हैं।
भारत की चिंता उन्हें अब क्लिंगिंग एक्स की तरह लग रही है — वह प्रेमी जो अपना वजूद साबित करने के लिए हर मंच पर भावनाओं का पुलिंदा लेकर दौड़ता है।
🔥 कूटनीतिक गणित फेल हो गया
नई दिल्ली ने अमेरिका के साथ “व्यक्तिगत केमिस्ट्री” पर बहुत दांव लगाया।
झप्पियों से रणनीतिक साझेदारी नहीं बनती — ये अब साफ हो गया है।
ट्रंप जैसे नेता के लिए रणनीति बदलना जैक-इन-द-बॉक्स की तरह आसान है।
पाकिस्तान, जो कभी “झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया” कहकर ट्रंप की आंखों से गिर गया था, आज फिर उनके दिल में घर कर चुका है।
33 अरब डॉलर की पुरानी शिकायतें अब अतीत की बात हैं — ट्रंप का नया प्रेम इन्फ्लेशन-इंडेक्स्ड है।
इस बार पाकिस्तान को और अधिक आर्थिक प्रेम-वर्षा मिलने की पूरी संभावना है।
🤔 अब क्या?
अगर आज फिर भारत में कोई बड़ा आतंकी हमला होता है, तो क्या होगा ट्रंप-मुनीर प्रेम-कथा का?
कहां जाएगा वह सारा कूटनीतिक प्रयास, वह आतंकवाद पर वैश्विक लामबंदी की उम्मीद?
मुनीर कोई सामान्य जनरल नहीं — चालाक, अवसरवादी और आत्मनिर्मित फील्ड मार्शल हैं, जो अपने सैन्य रैंक की सिलाई खुद करवाते हैं। वे ‘शून त्ज़ु’ के उस सिद्धांत पर चलते हैं — “यदि आप दुश्मन और खुद को जानते हैं, तो सौ लड़ाइयों में भी हार का डर नहीं।”
या फिर अल्फ्रेड ई. न्यूमैन के प्रसिद्ध कथन पर:
“जो लड़कर भाग जाता है, वह जीकर फिर लड़ सकता है।”
और मुनीर, बार-बार वाशिंगटन की बाहों में भागते नजर आएंगे।
नई दिल्ली को अब केवल प्रतिक्रिया देने वाला किरदार नहीं बनना होगा, बल्कि खेल का सूत्रधार बनना होगा।
📍 निष्कर्ष: प्रेम त्रिकोण में सबसे कमजोर कोण
अमेरिका, पाकिस्तान और भारत के इस प्रेम-राजनीति त्रिकोण में, भारत फिलहाल सबसे कमजोर कड़ी नजर आ रहा है।
जब तक रणनीति भावना से नहीं, हकीकत और ठोस नीति से नहीं बनाई जाएगी — तब तक भारत को सिर्फ भाषण देने और आशा रखने का काम ही मिलेगा।
✍️ “कूटनीति में अगर प्यार है, तो धोखा भी होगा। और अगर सावधानी न हो, तो हर झप्पी एक छुरा बन सकती है।”

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
Authentic news.