पिता, पति और पुत्र बने राजनैतिक सारथी
सत्यनिधि त्रिपाठी, (संजू)
कालांतर में जब पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को राजनीति में अवसर प्रदान किया गया तब महत्वाकांक्षी पुरुष प्रधान समाज द्वारा घरेलू महिलाओं का राजनीति में पदार्पण कराया गया तत्पश्चात एक नए पद का सृजन हुआ नाम रखा गया “प्रतिनिधि” ।
जी हां प्रतिनिधि, इस प्रतिनिधि को पूरा हक होता है चुने हुए जनप्रतिनिधि के स्थान पर अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने का । इतना ही नहीं उस चुने हुए जनप्रतिनिधि की नाम पट्टिका वाले वाहन से लेकर कार्यालय तक में उचित दखलंदाजी और धौंस की बदौलत खुद को जनप्रतिनिधि के स्थान पर स्थापित करना जैसे प्रतिनिधियों का अधिकार है । जनता द्वारा चुनी गई महिला जनप्रतिनिधि के पुरुष प्रतिनिधि वास्तव में स्वयं को ही निर्वाचित प्रतिनिधि मानकर अधिकारियों के साथ समय समय पर होने वाली बैठकों में भी सीना तान कर सभागारों की सिर्फ शोभा ही नहीं बढ़ाते बल्कि अधिकारियों के काम में दखलनदाजी भी करते हैं । और बेचारे अधिकारी नेताजी के सत्ताधारी नेताओं के संबंधों के चलते मूक बने रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं ।
मंत्री, सांसद, विधायक का कार्यक्षेत्र बड़ा होने के कारण उनके प्रतिनिधि बनाना तो समझ में आता है मगर पार्षद, जनपद सदस्य, सरपंच, पंच आदि के प्रतिनिधि बनाना समझ से परे है ।
कार्यालय में भी अघोषित मुखिया होते हैं निर्वाचित प्रतिनिधि के पिता, पति, पुत्र और भाई पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण तो मिला, लेकिन यह व्यवस्था यहां बेमानी साबित हो रही है। आलम यह है कि जनप्रतिनिधि होती है महिला और रोब चलता है पिता, पति, पुत्र और भाई का। किसी भी काम के लिए लोगों को उन्हीं से मिलना होता है। जनप्रतिधि के घर पर भी मिलते हैं उसके अघोषित पुरुष प्रतिनिधि महिला किसी भी पद पर निर्वाचित हो पुरुष प्रतिनिधि ही सभी काम संभालते हैं। यह बात यहां के लिए नई नहीं है। अपने अधिकारों की जानकारी के अभाव में महिला द्वारा पूरे कार्य अपने पुरुष प्रतिनिधि को सौंप दिए जाते हैं ।
महिला जनप्रतिनिधि घर पर रहती है। उनके पुरुष प्रतिनिधि उसके कार्यालय या कार्यक्षेत्र में डयूटी देते हैं। जब कभी कार्य प्रणाली के बारे में जनता सवाल पूछती है तो महिला जनप्रतिनिधि भौंचक रह जाती है और अपने प्रतिनिधि की तरफ देखने लगती हैं। वास्तविकता के तह में जाय तो सभी श्रेणी की निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों के अधिकारों को पुरुष अपने हाथ में लेकर कार्यकर्ताओं का निपटारा करते हैं। ऐसा नहीं है कि महिला जन प्रतिनिधियों के अधिकारों के हनन की जानकारी विभागीय अधिकारियों को नहीं है। लेकिन वे भी पुरुष देव को सर्वश्रेष्ठ मानने में हिचकिचाते नहीं हैं। इतना ही नहीं पुरुष प्रधान समाज में अधिकारी कर्मचारी भी पुरुषों को महिला जनप्रतिनिधियों के पद से संबोधित करते हैं । और पुरुष देव गौरवान्वित होते हैं। निर्वाचित होने वाली महिलाओं को अपने अधिकार व कर्तव्य के बारे में समझना होगा। तभी सरकार द्वारा पचास फीसदी महिलाओं को दिया गया आरक्षण का लाभ मिल पाएगा। समय समयपर सरकार द्वारा जन प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित भी किया जाता है। महिला जनप्रतिनिधियों को जनता के बीच रुबरु होना एवं जनता के कार्यो में अपनी भागीदारी निभानी होगी।
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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