टाइगर स्टेट की प्रतिस्पर्धा में निरंतर नंबर वन पर बने रहने की चाहत में मध्यप्रदेश शासन वन विभाग एक तरफ अमले पर जहां आम आवाम के संग्रहित राजस्व के एक अंश का करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रहा है वही प्रदेश टाइगर स्टेट के तगमे को बरकरार रखने मैं अपने को फिसड्डी सिद्ध करने में लगा हुआ है आए दिन प्रदेश में शेर के शिकार हो रहे हैं और इनको रोकने में वाइल्डलाइफ प्रशासन अक्षम बना हुआ है यही नहीं इनकी मृत्यु का कारण चाहे कुछ भी हो विभाग के पास प्रोफार्मा में दर्ज तीन या चार प्रमुख कारण आम जनता के सामने परोस दिए जाते हैं जैसे टेरिटरी फाइट. वृद्धावस्था आदि. वह तो भला हो उन असंतुष्ट कर्मचारियों का जो कर्तव्यनिष्ठ तो हैं लेकिन चाटुकारिता नामक योग्यता वि हीन है और उन्हीं के कारण यह सब मामले सार्वजनिक हो जाते हैं जिससे विभाग के जिम्मेदारों पर आज नहीं तो कल मुसीबत टूट ही पड़ती है हालांकि अभी तक इस प्रकार के मामलों में शासन ने इस प्रकार के गंभीर मामलों पर बर्फ डालने के लिए सिर्फ निचले दर्जे के ही कर्मचारियों एवं अधिकारियों के विरुद्ध दिखावटी कार्यवाही की है जिसे यदि औपचारिकता का नाम दिया जाए तो शायद ज्यादा बेहतर होगा. मूल प्रश्न यह है जब प्रदेश में इस प्रकार के वन्यजीव विरोधी तत्व योजनाबद्ध रूप से अपने कार्य में संलग्न है और निरंतर सफलता प्राप्त कर रहे हैं फिर मध्य प्रदेश वन विभाग का भोपाल स्थित उच्च स्तरीय वाइल्डलाइफ प्रबंधन इसकी रोकथाम के लिए क्यों प्रयास नहीं कर रहा है निरंतर बढ़ते हुए इन अपराधियों की संख्या और बढ़ते हुए अपराध क्या इस ओर इशारा नहीं कर रहे हैं कि भोपाल में बैठा हुआ वाइल्ड लाइफ प्रबंधन का भारी-भरकम अमला इन शिकारियों को रोक पाने में पूर्णत अक्षम है और यदि ऐसा है तो शासन फिर इस अमले पर इनके लाव लश्कर पर आम आवाम के राजस्व से एकत्रित करोड़ों रुपया क्यों पानी की तरह बहा रहा है. और यदि ऐसा नहीं है तो शासन द्वारा इन जिम्मेदारों से यह प्रश्न किया जाना चाहिए इतनी गंभीर दुर्घटना के बाद भोपाल में बैठे हुए वन्य प्राणी संरक्षण के वरिष्ठ अधिकारी आखिर इन संवेदनशील क्षेत्रों का इन संवेदनशील रिजर्व टाइगर का साल में कितनी बार स्थल परीक्षण करते हैं क्यों अपनी जिम्मेदारी से दूर भागते हैं क्यों अभी तक नर्मदापुरम के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व मैं घटित शेर के शिकार की देश की अपने तरह की उस गंभीर दुर्घटना जिसमें शिकारी शेर का सिर काट कर ले गए उसका स्थल निरीक्षण करने के लिए किस मुहूर्त का इंतजार कर रहे हैं क्यों नहीं मध्यप्रदेश शासन छोटे अधिकारियों और कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाने की जगह भोपाल में बैठे हुए वन्य प्राणी संरक्षण के वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध सख्त अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं करता जो प्रदेश में ही नहीं देश में भी नजीर बन सके और वन्य प्राणी संरक्षण के साथ ही सुशासन स्थापना का मध्य प्रदेश शासन का सपना साकार हो सकेI
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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