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Saturday, July 19, 2025, 2:17 am

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इमारतें नहीं, व्यवस्था गिर रही है

विमान
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✈ जब रनवे के पास सिर्फ विमान नहीं, मौतें भी उतरती हैं

भारत में हवाई अड्डों के इर्द-गिर्द की ऊँची इमारतें सिर्फ वास्तुकला की गलतियां नहीं हैं, ये राज्य व्यवस्था की बेबसी और प्रशासन की मिलीभगत की ऊँचाई दिखाती हैं। अहमदाबाद की भयावह विमान दुर्घटना में 241 लोग मारे गए, दर्जनों ज़मीन पर भी — और सवाल वही पुराना उठा: ये इमारतें यहाँ आई कैसे?

जब मुंबई जैसे वैश्विक शहर में एयरपोर्ट के उतरते जहाज से खिड़कियों पर सूखते कपड़े दिखें — वह सिर्फ दृश्य नहीं, सिस्टम की असंवेदनशीलता का आईना है


🏗 निर्माण की आड़ में भ्रष्टाचार की नींव

आधिकारिक रूप से, सरकार ने स्वीकार किया कि सांताक्रूज़ में सात इमारतों को आंशिक रूप से तोड़ा गया, पर यह कब? छह साल बाद, एक जनहित याचिका के दबाव में!

  • 48 खतरनाक संरचनाएँ पहले ही चिह्नित हो चुकी थीं,
  • पर सरकार ने सिर्फ एक आदेश देकर अपने हाथ झाड़ लिए।

फाइलों पर दस्तखत करने वाले कहां हैं?
किसके कहने पर NOC मिला?
किनके इशारे पर नियमों को ताक पर रखकर मंजूरी दी गई?

इन सवालों के जवाब सिर्फ दस्तावेज़ों में नहीं, दोषियों के चेहरे उजागर करने में हैं।


🧱 दोषी कौन? और कीमत कौन चुका रहा?

यह देश का विडंबनापूर्ण व्यंग्य है कि:

जिन्होंने कानून तोड़ा, वे मौज में हैं —
और जिन्होंने घर बसाने का सपना देखा, वे मलबे में हैं।

चाहे मुंब्रा-दीवा के शिल क्षेत्र की 17 इमारतें हों या प्रसिद्ध कैंपा कोला परिसर, हर बार बिल्डर और अधिकारी मिलकर नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हैं — और अंत में सिर्फ आम आदमी का सपना टूटता है।


🧾 समाधान: सील नहीं, सज़ा ज़रूरी है

कोर्ट का हस्तक्षेप सराहनीय है, पर इमारत गिराने से न्याय नहीं मिलता, जब तक:

  1. फाइल पर हस्ताक्षर करने वाले हर अधिकारी की पहचान सार्वजनिक न की जाए,
  2. उन्हें वेतन कटौती, पदावनति, और विलंबित प्रोन्नति जैसी कड़ी सज़ाएँ न दी जाएं,
  3. और सभी प्रशासनिक मंजूरी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लागू न हो।

इसी तरह, एक डिजिटल रजिस्टर जिसमें हर निर्माण की स्वीकृति, जिम्मेदार अधिकारी, और NOC की तिथि दर्ज हो — आम जनता की पहुँच में होना चाहिए।


💥 निष्कर्ष: अब आंख मूंदने से नहीं चलेगा

एक तरफ सरकार 200% जुर्माना वसूल रही है, दूसरी तरफ निर्माण जस का तस खड़ा है — इससे क्या संदेश जा रहा है?

कि पैसा दो, कानून को किनारे करो?

अब वक़्त है जब भारत के नागरिक सिर्फ अवैध निर्माणों को नहीं, बल्कि वैध भ्रष्टाचारियों को भी ध्वस्त करने की मांग करें। न्याय की शुरुआत तब होगी, जब गिरेगा ‘व्यवस्था का पर्दा’, सिर्फ दीवार नहीं।


✍️ “हर गिराई गई ईंट के साथ अगर एक ज़िम्मेदार अफ़सर का नाम भी उजागर हो — तो शायद अगली ईंट गलत नींव पर न रखी जाए।”

 


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