12 जून 2025 को अहमदाबाद के आसमान में जो कुछ हुआ, वह केवल एक विमान दुर्घटना नहीं थी — वह भारत की नागरिक उड्डयन व्यवस्था के कई सालों से चले आ रहे लापरवाह रवैये का एक जलता हुआ प्रमाण था। AI 171 की दुर्घटना, जिसमें 270 से अधिक ज़िंदगियाँ बुझ गईं, एक भयानक याद दिलाती है कि हम तकनीक को भले ही आधुनिक बना लें, सोच और व्यवस्था आज भी जर्जर हालत में हैं।
शहरों में कैद उड़ानें: खुला आकाश नहीं, कंक्रीट का पिंजरा
हमारे देश के अधिकतर हवाई अड्डे शहरों के बीचोंबीच हैं। जहां हवा से पहले धुएं, गंदगी और पक्षियों की टोलियां विमान से टकराने को तैयार बैठी हैं। कचरे के ढेर, कसाईखानों की बदबू और खुले डंपिंग ग्राउंड्स सिर्फ़ बीमारी नहीं फैलाते — ये रनवे के बगल में खड़ी मौत हैं।

AI 171 के रास्ते में भी कुछ ऐसा ही हुआ — माना जा रहा है कि बड़े पक्षी इंजन में घुस गए। दोनों इंजन बंद हो गए। और फिर वो फ्लाइट, जो मुस्कुराते चेहरों के साथ आसमान की ओर बढ़ी थी, आग की लपटों में एक इमारत से जा टकराई।
तकनीक नहीं, टालमटोल जवाबदेही की मारी
हर बार दुर्घटना के बाद वही प्रक्रिया शुरू होती है — AAIB जांच करेगा, DGCA रिपोर्ट मंगाएगा, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ जोड़ दिए जाएंगे। और फिर सब कुछ फाइलों की राख में दफन हो जाएगा। क्या आपने कभी सुना कि किसी ज़िम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई हुई? किसी एयरपोर्ट के आस-पास से खतरनाक ढांचे हटाए गए?
हमारे सिस्टम में “एक्सीडेंट” केवल तब माना जाता है जब कुछ बचा नहीं जा सकता। लेकिन अगर किसी रनवे के ठीक सामने इमारत खड़ी हो, अगर टेकऑफ एरिया में ही पक्षियों के झुंड मंडरा रहे हों — तो ये “एक्सीडेंट” नहीं, पूर्व-घोषित हत्याएं हैं।
पायलट की 30 सेकंड की लड़ाई बनाम सिस्टम की 30 साल की नींद
Capt. Sumit Sabharwal और उनकी टीम के पास मुश्किल से 30 सेकंड थे। इंजन फेल हुआ, गियर ऊपर नहीं उठ पाए, विमान तेजी से नीचे गिरा। इन कुछ सेकंडों में उन्होंने जो भी निर्णय लिए, वे किसी भी इंसान की क्षमता के चरम को छूते हैं। और हमारे सिस्टम को? उसे तीन दशक भी कम पड़ते हैं सुधारने के लिए।
हवाई सुरक्षा केवल विमान में नहीं, ज़मीन पर भी चाहिए
जब तक एयरपोर्ट के चारों ओर “वास्तविक” नो-ऑब्जेक्शन ज़ोन नहीं बनाए जाएंगे, जब तक कसाईखाने, होटल और गगनचुंबी इमारतों को रनवे से दूर नहीं किया जाएगा, जब तक सुरक्षा को “कागज़” से निकालकर “कार्यवाही” में नहीं बदला जाएगा — तब तक हम सिर्फ़ उड़ानों की नहीं, उम्मीदों की भी कब्र खोदते रहेंगे।
🛑 निष्कर्ष: हादसे तब होते हैं जब लापरवाही को मंज़ूरी मिलती है
AI 171 की आग में केवल विमान नहीं जला — हमारी उड़ान की नीयत भी झुलस गई। यह समय है आत्ममंथन का, केवल जांच रिपोर्ट का नहीं, एक नए सोच, नए नियमन, और ज़ीरो टॉलरेंस नीति का। नहीं तो अगली उड़ान कहीं से भी, किसी भी शहर से, आखिरी उड़ान बन सकती है।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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