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Saturday, July 19, 2025, 1:58 am

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भारत और इज़राइल-ईरान संकट: एक आर्थिक दृष्टिकोण

इज़राइल-ईरान
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जब वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड के बाद पटरी पर लौटने लगी थी और अमेरिका-चीन व्यापार तनाव थमता दिख रहा था, तभी पश्चिम एशिया का नया संकट — इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव — एक नया अनिश्चितता का बादल बन गया है। भारत जैसे ऊर्जा-निर्भर देश के लिए यह युद्ध सिर्फ कूटनीतिक चिंता नहीं, बल्कि तेल, व्यापार और महंगाई के ज़रिए घरेलू अर्थव्यवस्था पर असर डालने वाला संकट बन सकता है।

🌍 भूराजनीतिक संघर्ष और वैश्विक तेल बाज़ार

पश्चिम एशिया में युद्ध कोई नई बात नहीं, लेकिन जब इसमें कोई तेल उत्पादक देश शामिल होता है — जैसे ईरान — तब उसकी अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आपूर्ति शृंखला पर प्रभाव की संभावना बढ़ जाती है।

हालांकि ईरान पर पहले से ही पश्चिमी प्रतिबंध हैं और उसका तेल निर्यात मुख्यतः चीन जैसे देशों तक सीमित है, फिर भी उसकी मात्र उपस्थिति बाज़ारों में घबराहट पैदा करने के लिए काफी है। ब्रेंट क्रूड $75 प्रति बैरल के ऊपर पहुंच चुका है, और अगर संकट बढ़ा तो यह $90 तक भी जा सकता है।

🇮🇳 भारत पर संभावित प्रभाव

1️⃣ तेल की कीमतें और महंगाई

भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का लगभग 85% आयात करता है। लेकिन राहत की बात यह है कि भारत अब रूस से रियायती दरों पर तेल खरीद रहा है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कीमतों का प्रभाव कुछ हद तक सीमित रहेगा।

  • खुदरा स्तर पर भारत में पेट्रोल-डीज़ल के दाम सरकार और तेल कंपनियों द्वारा स्थिर रखे जाते हैं।
  • थोक स्तर (WPI) पर कुछ असर अवश्य होगा, जैसे ATF (एविएशन टरबाइन फ्यूल) की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे हवाई किराए और लॉजिस्टिक्स महंगे हो सकते हैं।

2️⃣ रुपया और व्यापार घाटा

तेल महंगा होने से भारत का आयात बिल बढ़ेगा, जिससे चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) और रुपये पर दबाव आ सकता है।

  • कमजोर रुपया निर्यात को थोड़ी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त दे सकता है — खासकर वस्त्र, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में।
  • लेकिन वैश्विक अनिश्चितता और अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ भारत के निर्यात को प्रभावित कर सकते हैं।

3️⃣ सरकारी बजट और सब्सिडी

पेट्रोल-डीजल की कीमतें डीरेगुलेट हैं, इसलिए सरकार पर सीधी सब्सिडी का भार नहीं आता।

  • LPG पर कुछ सब्सिडी ज़रूर है, लेकिन वह सीमित है।
  • फर्टिलाइज़र सब्सिडी में वृद्धि संभव है, अगर प्राकृतिक गैस की कीमतें बढ़ती हैं।

4️⃣ लॉजिस्टिक्स और समुद्री मार्गों पर खतरा

ईरान यदि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण Hormuz जलडमरूमध्य को बंद करने की कोशिश करता है, तो वैश्विक तेल आपूर्ति बाधित हो सकती है।

  • इससे शिपिंग और बीमा लागतें बढ़ेंगी।
  • भारतीय आयात-निर्यात की गति धीमी हो सकती है।

🧭 भारत की रणनीतिक सोच: जोखिम से अवसर तक

यह संकट भारत को कुछ महत्वपूर्ण सबक देता है:

  • ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से कदम उठाने की ज़रूरत है — जैसे सौर और हरित हाइड्रोजन परियोजनाएं।
  • रणनीतिक तेल भंडारण (Strategic Oil Reserves) को और मज़बूत करना चाहिए।
  • विदेश नीति में भारत को संतुलन और निष्पक्षता बनाए रखनी होगी ताकि किसी गुट में फंसने से बचे।

निष्कर्ष: संकट सीमित, लेकिन सतर्कता अनिवार्य

फिलहाल यह युद्ध स्थानीय स्तर पर सीमित दिख रहा है, और भारत पर इसका प्रत्यक्ष प्रभाव सीमित हो सकता है। लेकिन ऊर्जा कीमतों में अनिश्चितता, व्यापारिक दबाव और मुद्रा पर असर जैसे परोक्ष प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को चाहिए कि वे बाज़ार की नब्ज़ पर कड़ी नज़र रखें, ताकि यदि हालात बिगड़ें, तो आर्थिक झटकों से देश को बचाया जा सके।

आख़िरकार, युद्ध चाहे कहीं भी हो — उसकी आग की तपिश भारत जैसे उभरते देशों की अर्थव्यवस्था को भी महसूस होती है।


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