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Sunday, June 22, 2025, 10:18 am

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“महाराष्ट्र की नैतिक विफलता: सत्ता का मौन, घोटालों की गूंज”

महाराष्ट्र
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जिस महाराष्ट्र की पहचान कभी शिवाजी महाराज के साहस और सामाजिक चेतना से होती थी, आज वहीं राज्य राजनीतिक बेशर्मी और प्रशासनिक सुस्ती का शिकार बन गया है।

सरकार ने अपना 2024-25 का ‘प्रगति रिपोर्ट’ पेश किया — लेकिन पढ़ते समय ऐसा लगा मानो ये पश्चाताप का पत्र हो, मगर पछतावे के बिना।


शब्द अब केवल संवाद नहीं, अपमान बन गए हैं

राजनीति में विचारों की जगह अब गालियों ने ले ली है। एक राष्ट्रीय प्रवक्ता, जो सत्ता पक्ष से हैं, उन्होंने लाइव टीवी पर विरोधी की मां को वेश्या कह दिया — और पूरी पार्टी में एक चुप्पी छा गई।

यह केवल एक महिला का अपमान नहीं था — यह महाराष्ट्र की संस्कृति का चीरहरण था।

जब नेता गाली को गर्व से बोलते हैं और पार्टी आंखें मूंद लेती है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सत्ता अब संवेदनशीलता से नहीं, सत्ता के नशे से चल रही है।


महिला आयोग या केवल एक नाम की संस्था?

राज्य महिला आयोग की भूमिका आज एक औपचारिक मुहर से ज़्यादा कुछ नहीं रही। हगवणे परिवार की बहुओं की शिकायतें आयोग के पास पहुंचीं, लेकिन सिर्फ़ काग़ज़ों पर।

एक महिला ने आत्महत्या कर ली, दूसरी न्याय के लिए रोती रही — और आयोग की अध्यक्षा रूपाली चाकणकर सिर्फ़ पत्र लिखती रहीं।

जब न्याय देने वाले हाथ थमे रहते हैं, तब अन्याय की जड़ें गहरी होती जाती हैं।


टेंडर के नाम पर बंदरबांट

बोरीवली-ठाणे ट्विन टनल प्रोजेक्ट में टेक्निकल रूप से सबसे योग्य कंपनी (L&T) को बाहर कर देना और उससे 3,100 करोड़ रुपये ज़्यादा की बोली लगाने वाले को ठेका देना — ये क्या सिर्फ़ प्रक्रिया की चूक थी?

नहीं। यह था जनता के पैसे से सत्ता की सौदेबाज़ी।

सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि MMRDA की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी। एक प्रतिष्ठित कंपनी को सिर्फ़ इसलिए बाहर कर देना कि वह सस्ते में काम कर रही थी — यह ‘सब कुछ सही है’ वाली राजनीति की असली तस्वीर है।


लाडकी बहिन योजना — सशक्तिकरण या चुनावी मिठाई?

महिलाओं को ₹1500 प्रति माह देने की योजना चुनाव से ठीक पहले घोषित की गई। अब खुलासा हुआ है कि 2,000 से अधिक लाभार्थी इसके पात्र ही नहीं थे, जिनमें कई सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं।

इस योजना का मकसद महिलाओं को सशक्त करना नहीं, बल्कि मतों को लुभाना था।


न्याय मांगती है जनता, मगर जवाब नहीं देता कोई

शिंदे सरकार के कई फैसले सवालों के घेरे में हैं — जलना हाउसिंग प्रोजेक्ट से लेकर BMC के सफाई टेंडर तक। लेकिन कोई जवाबदेही नहीं। कोई मंत्री इस्तीफा नहीं देता। और कोई नेता स्पष्टीकरण नहीं देता।

कहीं कुछ टूटा नहीं है — बल्कि पूरा सिस्टम ही ‘मैनेज’ हो गया है।


2014 का सवाल आज लौट आया है

2014 में भाजपा ने पूछा था: “कुठे नेऊन ठेवलंय माझं महाराष्ट्र?”
आज वही सवाल आम जनता पूछ रही है — और सत्ता मौन है।


निष्कर्ष:

यह केवल प्रशासन की असफलता नहीं है, यह नैतिक पतन का दस्तावेज़ है।
यह एक ऐसा दौर है जहाँ गाली देने वाला नेता सुरक्षित है, और न्याय मांगने वाली जनता असहाय।

अगर महाराष्ट्र की आत्मा बचानी है, तो केवल सरकार नहीं, समाज को भी जागना होगा। वरना एक दिन न्याय भी इतिहास की चीज़ बन जाएगा।

 


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