भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने ब्याज दरों में बड़ी कटौती की है, जिससे होम लोन धारकों से लेकर छोटे व्यापारियों तक सभी को राहत मिलेगी। लेकिन क्या इससे भारत की अर्थव्यवस्था की सभी चुनौतियाँ खत्म हो जाएंगी? शायद नहीं।
रेपो और सीआरआर में बड़ी कटौती: एक साहसी कदम
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आश्चर्यजनक रूप से रेपो दर में 50 बेसिस प्वाइंट (bps) और नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में 100 bps की कटौती की है। यह अपेक्षा से कहीं अधिक था, क्योंकि बाजार में अधिकतर विश्लेषकों को केवल 25 bps की कटौती की उम्मीद थी।

सीआरआर में की गई यह कटौती चार चरणों में करीब ₹2.5 लाख करोड़ की तरलता प्रणाली में डालेगी — जो अर्थव्यवस्था में नकदी की उपलब्धता बढ़ाने में मदद करेगी।
अब और कटौतियों की संभावना कम
यह कदम ‘फ्रंटलोडिंग’ के रूप में देखा जा सकता है — यानी शुरुआत में ही बड़ा कदम उठा लेना ताकि भविष्य में और कटौती की ज़रूरत ना पड़े। चूंकि RBI ने सालाना मुद्रास्फीति (महंगाई) दर 3.7% (Q4 में 4.4%) का लक्ष्य रखा है, और अगर 1.5% का वास्तविक ब्याज दर (real rate) बनाए रखना है, तो 5.5% की रेपो दर वाजिब मानी जाती है।
उपभोक्ताओं और MSMEs को राहत
घरेलू उपभोक्ता:
होम लोन या कार लोन लेने वालों के लिए यह बहुत अच्छा समय है। चूंकि इन लोन की ब्याज दरें बाहरी बेंचमार्क (जैसे रेपो रेट) से जुड़ी होती हैं, इसलिए ब्याज दरों में कटौती का लाभ सीधे ग्राहकों को मिलता है।
MSMEs (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम):
इस क्षेत्र को भी इसका बड़ा लाभ मिलेगा, क्योंकि उनके लिए ऋण की लागत पहले से ही बड़ी कंपनियों की तुलना में अधिक होती है। रेपो दर में कटौती का सीधा असर इन पर पड़ता है।
कॉरपोरेट क्षेत्र की स्थिति थोड़ी जटिल
कॉरपोरेट क्षेत्र आमतौर पर MCLR (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट) के आधार पर उधार लेता है। MCLR में बदलाव तभी होता है जब बैंकों की जमा दरें (deposit rates) घटें। लेकिन FY25 में बैंकों को डिपॉजिट बनाए रखने में परेशानी हुई क्योंकि निवेशक अधिक लाभ के लिए पूंजी बाजार की ओर मुड़ गए।
- बैंक अधिकतम 8-8.25% तक की जमा दर दे पा रहे थे।
- जबकि म्यूचुअल फंड्स और शेयर बाजार 10-14% तक का रिटर्न देते हैं।
ऐसे में बैंक जमा दरें घटाने में हिचकते हैं, जिससे MCLR पर आधारित कॉरपोरेट लोन में दरें उतनी तेजी से नहीं गिरतीं।
बड़े कॉरपोरेट्स के लिए बॉन्ड मार्केट बना सहारा
जो बड़े और बेहतर रेटिंग वाले कॉरपोरेट्स हैं, वे बॉन्ड मार्केट से आसानी से फंड जुटा पा रहे हैं। चूंकि बॉन्ड यील्ड्स गवर्नमेंट सिक्योरिटीज (Gsec) से जुड़ी होती हैं और Gsec यील्ड में गिरावट आई है, इसलिए इन कंपनियों को पहले से ही फायदा मिल रहा है।
बचतकर्ताओं की दुविधा: जमा या निवेश?
RBI की कटौती से जहां ऋण सस्ता हो रहा है, वहीं डिपॉजिट होल्डर्स के लिए रिटर्न का युग अब चरम पर पहुँच चुका है। यानी अब फिक्स्ड डिपॉजिट से कम ब्याज मिलेगा। निवेशकों के सामने दो रास्ते हैं:
- बचत की सुरक्षा चाहते हैं → बैंक डिपॉजिट में रहें।
- ज़्यादा मुनाफा चाहते हैं → म्यूचुअल फंड्स या शेयर बाजार का रुख करें (जो जोखिम से भरे हैं)।
आर्थिक वृद्धि पर RBI आशावादी, लेकिन चुनौतियाँ हैं
वित्त मंत्रालय ने FY25 के लिए GDP वृद्धि दर का अनुमान 6.3-6.8% के बीच रखा है। RBI को भी भरोसा है कि उपभोग और निवेश में बढ़ोतरी से 6.5% की ग्रोथ संभव है। लेकिन 7% की ग्रोथ को पार करना अभी भी एक कठिन चुनौती बना रहेगा।
मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बरकरार
RBI ने FY25 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान घटाकर 3.7% कर दिया है। यह मुख्यतः “बेस इफेक्ट” के कारण है — यानी पिछले वर्ष की ऊँची कीमतों के मुकाबले इस साल की दरें कम प्रतीत होती हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: फेड की सतर्कता जारी
जहाँ दुनियाभर के केंद्रीय बैंक दरें घटा रहे हैं, वहीं अमेरिकी फेडरल रिजर्व धीरे-धीरे कदम उठा रहा है — क्योंकि अमेरिका में मुद्रास्फीति और व्यापारिक टैरिफ को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। इससे डॉलर अस्थिर बना हुआ है, और वैश्विक वित्तीय धाराओं में अनिश्चितता भी।
निष्कर्ष: राहत है, लेकिन सतर्कता जरूरी
रेपो दर में यह कटौती एक सकारात्मक कदम है — खासकर होम लोन, MSMEs और व्यक्तिगत उधारकर्ताओं के लिए। लेकिन इसके समांतर बैंकों की जमा नीति, निवेशकों की मनोदशा, वैश्विक अनिश्चितता, और आर्थिक विकास की स्थिरता जैसे पहलुओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
ब्याज दरें घट रही हैं — यह अच्छा है।
लेकिन क्या इससे निवेश, खपत और रोजगार में स्थाई उछाल आएगा?
यही असली परीक्षा होगी।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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