इतिहास ने अक्सर दिखाया है कि राष्ट्रों के भाग्य कभी-कभी व्यक्तियों के अहंकार पर टंग जाते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर की गई बमबारी, ठीक वैसा ही एक क्षण है—एक ऐसा निर्णय, जो राजनयिक समझदारी नहीं, बल्कि निजी आत्मप्रदर्शन की आग से उपजा लगता है। यह केवल एक सैन्य हमला नहीं, बल्कि उस विचारधारा का विस्फोट है जिसमें संवाद की जगह प्रदर्शन, और रणनीति की जगह सनसनी ने ले ली है।
इस कार्रवाई ने उस नींव को हिला दिया है जिस पर दशकों से खड़ी अंतरराष्ट्रीय परमाणु नीति की इमारत बनी थी। जिस ईरान को कूटनीतिक वार्ताओं, आर्थिक प्रतिबंधों और समय के इंतज़ार से रोका जा रहा था, उस पर एकाएक बम गिराकर ट्रंप ने केवल उसकी भौतिक संरचनाएं नहीं तोड़ीं—उन्होंने उसे अपने सबसे भयावह निर्णय को वैध ठहराने का कारण भी दे दिया। अब यदि तेहरान न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी से बाहर निकल कर खुलेआम बम बनाने की दौड़ में शामिल होता है, तो क्या ट्रंप का हमला उसका आधार नहीं कहलाएगा?

यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि जिस व्यक्ति ने चुनावी भाषणों में “मध्य पूर्व के अंतहीन युद्धों” को मूर्खता बताया था, वही अब उस पटाखे में माचिस लगा रहा है जिसे बुझाने में अतीत की कई पीढ़ियाँ लगी रहीं? ट्रंप की यह कार्रवाई न केवल खतरनाक है, बल्कि एक मिसाल भी बन सकती है—एक ऐसी वैश्विक मिसाल जिसमें संदेह ही प्रमाण बन जाए, और युद्ध केवल पूर्वानुमान पर आधारित हो।
ट्रंप और नेतन्याहू के बीच स्पष्ट दिखता समन्वय यह संकेत देता है कि यह हमला किसी तात्कालिक सुरक्षा चिंता का समाधान नहीं, बल्कि साझा राजनीतिक पूंजी की खेती है। और इस खेत की खाद बनी है अंतरराष्ट्रीय शांति की आशंकाएं, खून और विस्फोट। पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष से ट्रंप की मुलाक़ात अब ‘कूटनीति’ से ज़्यादा ‘पूर्व-साफ़-सफ़ाई’ जैसा प्रतीत होती है, ताकि पूर्वी मोर्चे से ईरान की प्रतिक्रिया को रोका जा सके।
लेकिन सवाल उठता है — क्या यह वाकई एक जीत है? क्या इस हमले से अमेरिका ने परमाणु खतरे को कम किया है, या उसे और अधिक उकसाया है? भले ही फोर्दो और नतांज़ अब खंडहर हो गए हों, पर विज्ञान के सूत्र और राष्ट्रीय संकल्प किसी कंक्रीट से बने नहीं होते। ईरान जानता है कि “फ़िज़िक्स को बमबारी से नष्ट नहीं किया जा सकता।”
इस हमले की सबसे गंभीर परिणति यह है कि उसने अमेरिका को उसी श्रेणी में ला खड़ा किया है, जहाँ तानाशाही राष्ट्र अपने भय से ग्रसित होकर पहले मारते हैं और फिर सवाल पूछते हैं। जब ‘संभावना’ ही ‘सबूत’ का स्थान लेने लगे, तब अंतरराष्ट्रीय प्रणाली अनिश्चितता की गर्त में गिरती है।
इस बीच, ट्रंप के लिए यह हमला एक कथित “मिशन अकॉम्प्लिश्ड” क्षण हो सकता है—एक ऐसा दृश्य जो चुनावी रैलियों में तालियाँ बटोरने के काम आएगा। परंतु इतिहास के दीर्घकालिक कैनवस पर यह काला धब्बा बन सकता है। ईरान के पास असममित प्रतिशोध की क्षमता है—हॉर्मुज़ की खाड़ी में धमाके, साइबर युद्ध, या दुनिया भर में फैले गुप्त ठिकानों की नींद तोड़ना। ट्रंप को एक जीत चाहिए थी, पर यदि ईरान का एक भी प्रतिशोध सफल होता है, तो यह विजय तत्काल “अतिरेक” में बदल सकती है।
इसलिए यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ट्रंप ने बम नहीं गिराए, बल्कि दुनिया के कंधों पर एक और अनिश्चित युद्ध का बोझ डाल दिया है। वैश्विक शांति के लिए यह केवल एक धमाका नहीं, बल्कि एक चेतावनी है—एक ऐसा आह्वान कि हम जिस आग को दूर समझते हैं, वह बहुत तेज़ी से हमारे दरवाज़े तक आ सकती है।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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