“एक खाली मन शैतान का घर होता है” — यह कहावत आज पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक हो चुकी है, विशेष रूप से भारत जैसे देश में जहां युवा जनसंख्या विश्व की सबसे बड़ी है। दुर्भाग्यवश, यही युवा शक्ति आज तेजी से किशोर अपराधों में उलझती जा रही है, और यह सिर्फ एक क़ानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक संकट बन चुका है।
⚠️ अपराध की ओर क्यों बढ़ रहे हैं किशोर?
किशोरों द्वारा अपराध करने के पीछे एक नहीं, कई जटिल कारण होते हैं:

- गरीबी और विषमता: गरीब परिवारों के बच्चे अपराध को “जल्दी अमीर बनने” का आसान रास्ता मानते हैं।
- माध्यमिक वर्ग की आकांक्षाएँ: सोशल मीडिया और ग्लैमर की दुनिया ने मध्य वर्ग के युवाओं को भ्रमित कर दिया है।
- मूल्यहीन शिक्षा और बेरोज़गारी: शिक्षा और रोजगार के बीच गहरी खाई ने उन्हें दिशाहीन बना दिया है।
- फैमिली स्ट्रक्चर का विघटन: माता-पिता के बीच झगड़े, उपेक्षा, और संयुक्त परिवारों का टूटना बच्चों को भावनात्मक सहारा देने से रोक रहा है।
- डिजिटल दुनिया का नशा: स्मार्टफोन, सोशल मीडिया, अनसेंसर्ड कंटेंट, और ऑनलाइन गेम्स बच्चों के मस्तिष्क को धीमे ज़हर की तरह प्रभावित कर रहे हैं।
📱 स्मार्टफोन: वरदान या संकट?
स्मार्टफोन आज बच्चों का पहला साथी बन चुका है। दुर्भाग्यवश, यह साथी उन्हें अभद्र सामग्री, हिंसक वीडियो, साइबर अपराध और आभासी आक्रोश की ओर धकेल रहा है।
क्या मोबाइल फोन की बिक्री पर आयु सीमा कानून की तरह कोई क़ानून बनना चाहिए, जैसे तम्बाकू और शराब पर है?
शायद हां, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि माता-पिता खुद अनुशासित भूमिका निभाएं और अपने बच्चों के डिजिटल जीवन को संतुलित करें।
🧓 परिवार और बुज़ुर्गों की भूमिका
संयुक्त परिवार की प्रणाली बच्चों के लिए एक भावनात्मक सुरक्षा कवच हुआ करती थी। दादा-दादी की उपस्थिति बच्चों को न केवल नैतिक कहानियों और संस्कृति से जोड़ती थी, बल्कि अकेलेपन और अवसाद से भी बचाती थी। आज यह ढांचा ढह गया है — परिणामस्वरूप बच्चे स्मार्टफोन और ड्रग्स में सुकून ढूंढने लगे हैं।
🏃♂️ खेल-कूद बनाम स्क्रीन टाइम
आज के बच्चे क्रिकेट को केवल टीवी पर देखना पसंद करते हैं, खेलना नहीं। यह मानसिक और शारीरिक दोनों स्तरों पर खतरनाक है।
- खेल सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण का साधन है।
- ओलंपिक जैसे प्रतिस्पर्धी खेलों को बढ़ावा देना ज़रूरी है, ताकि युवाओं की ऊर्जा सही दिशा में लगे।
💡 समाधान: क़ानून से पहले संस्कार
- परिवार से शुरुआत होनी चाहिए – बच्चों के साथ गुणवत्ता समय बिताना सिर्फ नारा नहीं, आवश्यकता है।
- डिजिटल साक्षरता होनी चाहिए – माता-पिता को भी सीखना होगा कि सोशल मीडिया का संतुलन कैसे बनाया जाए।
- स्कूलों में नैतिक शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को स्थान देना होगा।
- समाज को सामूहिक रूप से बच्चों को “उपभोक्ता” नहीं, भविष्य का नागरिक समझना होगा।
- सरकार को किशोर न्याय प्रणाली को और संवेदनशील बनाना होगा, ताकि अपराध करने से पहले ही उन्हें रोका जा सके।
✅ निष्कर्ष: युवाओं को दिशा देने का समय
युवा शक्ति राष्ट्र निर्माण की नींव है, लेकिन यदि यह भटक जाए तो वही शक्ति विनाश का कारण बन सकती है। किशोर अपराध की समस्या कोई अकेली घटना नहीं, बल्कि समाज के हर स्तर पर नैतिक और मानवीय चूक का परिणाम है। यदि हम अभी नहीं जागे, तो आने वाले वर्षों में हम न केवल अपराधियों, बल्कि खोए हुए नागरिकों की एक पूरी पीढ़ी देखेंगे।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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