वर्तमान में पश्चिम एशिया एक अभूतपूर्व मानवीय त्रासदी का गवाह बन रहा है। ग़ज़ा पट्टी पर इज़राइल की सेना द्वारा किया गया लगातार और निर्मम हमला अब एक युद्ध से अधिक, एक सामूहिक दंड का रूप ले चुका है। हजारों निर्दोष नागरिकों, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, की जानें चली गईं हैं, और लाखों लोग अपने ही घरों से बेघर हो चुके हैं।
इज़राइली नाकेबंदी ने भोजन, पानी और ईंधन जैसे जीवन रक्षक साधनों को ग़ज़ा में बंद कर दिया है, जिससे लाखों लोगों पर भुखमरी और मृत्यु की तलवार लटक रही है। हाल ही में रफ़ा में ग़ज़ा ह्यूमैनिटेरियन फ़ाउंडेशन द्वारा सहायता वितरण के दौरान भीड़ पर गोलियां चलाई गईं—यह दृश्य केवल त्रासदी नहीं, एक चेतावनी है।

“ग़ज़ा अब मानचित्र पर एक स्थान नहीं, बल्कि अंतरात्मा पर एक प्रश्नचिह्न बन गया है।”
इज़राइल का यह आक्रमण, भले ही अक्टूबर 2023 के हमास हमले की प्रतिक्रिया में हो, अब ‘आत्मरक्षा’ से आगे बढ़कर ‘प्रतिशोध’ और ‘वर्चस्व’ का रूप ले चुका है। स्कूल, अस्पताल, और शरण स्थल तक निशाने पर हैं। यह प्रतिक्रिया अब ‘अनुपातहीन हिंसा’ की श्रेणी में आ चुकी है, जिसे दुनिया भर में आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
हाल ही में फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा के प्रधानमंत्रियों ने एक संयुक्त बयान में इज़राइल की कार्रवाई को “पूरी तरह अनुपातहीन” बताया और कार्रवाई की चेतावनी दी। यूरोपीय संघ ने भी इज़राइल के साथ अपने राजनैतिक और आर्थिक संबंधों की समीक्षा की घोषणा की है। जर्मनी ने पहली बार संकेत दिए हैं कि वह ऐसे हथियार निर्यात नहीं करेगा जो मानवाधिकार उल्लंघन में प्रयुक्त हो सकते हैं।
“जब अपने ही इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय भूलकर कोई राष्ट्र दूसरों पर वही ज़ुल्म ढाए, तो वह केवल नैतिक पराजय नहीं, बल्कि ऐतिहासिक विडंबना बन जाता है।”
अरब देशों की वर्षों पुरानी दो-राष्ट्र समाधान की मांग अब वैश्विक समर्थन पा रही है। लेकिन नेतन्याहू सरकार इस समाधान को अस्वीकार करती रही है—शायद इसीलिए कि आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्यान हटाने के लिए यह युद्ध उनके लिए एक अवसर बन गया है।
हालांकि वाशिंगटन डीसी में इज़राइली दूतावास कर्मियों पर हुए हमले ने थोड़ी सहानुभूति उत्पन्न की, लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह आम धारणा बनती जा रही है कि इज़राइल फिलीस्तीनी समाज को सामूहिक रूप से दंडित कर रहा है—यह एक ‘लगभग नरसंहार’ के रूप में देखा जा रहा है।
निष्कर्षतः:
यह युद्ध केवल बमों और मिसाइलों से नहीं लड़ा जा रहा, यह इंसानियत की आत्मा पर किया जा रहा वार है। जब तक युद्धविराम नहीं होता और न्यायपूर्ण समाधान की दिशा में स्पष्ट प्रयास नहीं किए जाते, तब तक इज़राइल वैश्विक मंच पर और अधिक अलगाव का सामना करता रहेगा।
“सत्ता के बल पर शांति थोपी नहीं जाती—वह संवाद, सहानुभूति और समानता से पनपती है।”

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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