Explore

Search

Sunday, June 22, 2025, 11:00 am

Sunday, June 22, 2025, 11:00 am

LATEST NEWS
Lifestyle

साफ़-सुथरी छवि, लेकिन उठते सवाल

माधबी पुरी बुच
Share This Post

लोकपाल द्वारा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की पूर्व प्रमुख माधबी पुरी बुच को सभी आरोपों से मुक्त कर देना आश्चर्यजनक नहीं था, परन्तु इस निर्णय ने उन गहराईयों को उजागर किया है जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं—विनियामक संस्थाओं की साख, राजनीति की परछाइयाँ और जनता की बदलती धारणा।

बुच और उनके पति पर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अडानी समूह को लाभ पहुँचाने के लिए गुप्त विदेशी निवेश माध्यमों का प्रयोग किया। यद्यपि इन दावों को कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला, फिर भी यह प्रकरण उस समय सामने आया जब हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने भारतीय बाजारों में भूचाल ला दिया था। उस रिपोर्ट ने न केवल अडानी समूह के शेयरों की कीमतें गिराईं, बल्कि भारत की वित्तीय निगरानी प्रणाली की कमजोरियों को भी उजागर कर दिया।

SEBI की मुखिया के रूप में, बुच से यह अपेक्षा थी कि वे पूंजी बाजारों की निष्पक्षता और पारदर्शिता की रक्षक बनेंगी। लेकिन जब उन्हीं पर हितों के टकराव का संदेह व्यक्त हुआ, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक था कि क्या नियामक संस्थाएं वास्तव में स्वतंत्र हैं?

लोकपाल ने, अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत, मामले को गंभीरता से लिया और निष्कर्ष निकाला कि शिकायत “अनुमानों और कल्पनाओं” पर आधारित थी। यह निर्णय भले ही बुच को आरोपों से मुक्त कर देता है, परंतु यह व्यवस्था की मजबूती का प्रमाण नहीं है—बल्कि उसकी सीमाओं का द्योतक है।

राजनीतिक संदर्भ भी इस मामले से अलग नहीं किया जा सकता। हिंडनबर्ग का अचानक विघटन, और उसके बाद आरोपों का शिथिल हो जाना, कईयों के लिए एक रणनीतिक वापसी जैसा प्रतीत हुआ। इसी बीच, सरकार द्वारा बुच को लगातार समर्थन मिलना भी आश्चर्यजनक रहा। एक अधिक जवाबदेह प्रणाली में, संभवतः उन्हें जांच तक पद से हटाया जाता। लेकिन यहाँ उन्होंने अपना कार्यकाल निर्विघ्न पूरा किया।

इस प्रकरण ने एक और सच्चाई उजागर की—कि लोकपाल नाम की संस्था अस्तित्व में है, परंतु उसकी प्रभावशीलता अब भी संदेह के घेरे में है। जिस जोश और आंदोलन से यह संस्था बनी थी, वह आज केवल स्मृति रह गया है। टेलिकॉम, कोयला या राष्ट्रमंडल खेल जैसे घोटालों के समय जो जनचेतना उभरी थी, वह अब थकी हुई प्रतीत होती है।

माधबी पुरी बुच इस जांच से निष्कलंक अवश्य निकलीं, परंतु इस प्रक्रिया ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक ऐसे आरोपों का निपटारा पारदर्शिता और राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ नहीं होता, तब तक नियामक संस्थाओं पर से जनता का भरोसा धीरे-धीरे मिटता रहेगा। हमें यह समझना होगा कि केवल दोषमुक्त होना ही पर्याप्त नहीं—न्याय का आभास भी उतना ही आवश्यक है।

 


Share This Post

Leave a Comment