भारत के लिए अवसर या चेतावनी?
अस्थायी विराम, स्थायी समाधान नहीं
अमेरिका द्वारा घोषित 90-दिन की टैरिफ रोक ने वैश्विक व्यापार पर कुछ समय के लिए विराम तो जरूर लगाया है, लेकिन यह स्थिरता का संकेत नहीं है। अमेरिकी प्रशासन की अस्थिर नीतियाँ—जैसे चीन पर शुल्कों में भारी कटौती और अचानक किए गए समझौतों से पीछे हटना—यह दर्शाती हैं कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था अब भरोसे के बजाय रणनीतिक चतुराई पर निर्भर करती है।
भारत को क्या करना चाहिए?
1. अतीत से सबक लें
अमेरिका द्वारा TPP, पेरिस समझौते, और ईरान परमाणु समझौते से हटना दर्शाता है कि भारत को अमेरिकी वादों पर अंधा विश्वास नहीं करना चाहिए। दीर्घकालिक रणनीति पर ध्यान देना ज़रूरी है।

2. इस विराम को अवसर में बदलें
भारत को इस समय का उपयोग एक ठोस रणनीति बनाने के लिए करना चाहिए:
- रणनीतिक कूटनीति को तेज करें: अमेरिका से संवाद को अधिक लक्षित और क्षेत्र-विशेष बनाएं।
- निर्यात बाजारों का विविधीकरण करें: केवल अमेरिका पर निर्भरता को कम करें और अफ्रीका, लैटिन अमेरिका व ASEAN क्षेत्र में नए अवसर खोजें।
- घरेलू प्रतिस्पर्धा में सुधार लाएं: लॉजिस्टिक्स, नियामक बाधाएं और उच्च उत्पादन लागत को सुधारें।
- विकल्पी व्यापार गठबंधनों को प्राथमिकता दें: IMEC, IPEF जैसे क्षेत्रीय समझौतों और FTA वार्ताओं में गति लाएं।
रक्षात्मक से सक्रिय दृष्टिकोण की ओर
भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष वस्त्र, फार्मा, रत्न, इंजीनियरिंग व आईटी सेवाओं पर आधारित है, जो टैरिफ झटकों के लिए अत्यंत संवेदनशील हैं। वहीं अमेरिकी मशीनरी, रक्षा और टेक्नोलॉजी का आयात बाधित होना हमारे निर्माण और अनुसंधान पर असर डाल सकता है।
इसके समाधान के लिए भारत को मूलभूत सुधारों जैसे लॉजिस्टिक अपग्रेड, निर्यात गुणवत्ता में सुधार और मूल्यवर्धन पर फोकस करना होगा।
आत्मनिर्भर भारत से वैश्विक भारत की ओर
HCL-Foxconn की चिप निर्माण इकाई जैसी परियोजनाएं और India Semiconductor Mission इस दिशा में मील का पत्थर हैं। इन्हें एक निर्यात-उन्मुख रणनीति में परिवर्तित करने की आवश्यकता है।
वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की भूमिका:
Foxconn जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारत की ओर झुकाव भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरने का अवसर देता है — बशर्ते हम सुधारों और इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी लाएं।
निष्कर्ष: व्यापार नीति में दूरदृष्टि का समय
यह 90 दिन का समय कोई अंत नहीं, बल्कि एक रणनीतिक तैयारी का प्रारंभ है। भारत को सक्रिय, दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाते हुए इस अस्थायी राहत को स्थायी लाभ में बदलना होगा।
कूटनीति, सुधार और वैश्विक जुड़ाव के त्रिकोण से भारत न केवल किसी भी भविष्यवर्ती व्यापारिक झटके का सामना कर सकता है, बल्कि वैश्विक व्यापार नेतृत्वकर्ता की भूमिका में भी उभर सकता है।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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