भारत आज दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। आंकड़ों में यह उपलब्धि गर्व की बात है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और कहती है। यदि देश की कुल आय तो बढ़ रही है लेकिन नागरिक की जेब में कुछ खास नहीं आ रहा, तो क्या हम सच में प्रगति कर रहे हैं?
1990 में भारत और चीन, दोनों की प्रति व्यक्ति आय लगभग बराबर थी। आज चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत से लगभग पाँच गुना अधिक है। चीन वहां पहुँच चुका है जहाँ भारत अभी सपना देख रहा है—उच्च-आय देश बनने का। अंतर सिर्फ नीतियों और नीयत का है।

भारत का आर्थिक आकार (GDP) तेज़ी से बढ़ रहा है, लेकिन उस विकास का लाभ आम नागरिक तक पहुँचने में रुकावटें हैं। अगर हर भारतीय की औसत आय सिर्फ़ $2700 है जबकि चीन में यह $13000 पार कर चुकी है, तो यह सोचने की ज़रूरत है कि हम कहाँ चूक रहे हैं।
बड़ी अर्थव्यवस्था का मतलब विकसित देश नहीं होता, जब तक हर नागरिक का जीवन स्तर न सुधरे।
देश को अब “3I मॉडल” को आत्मसात करना होगा—निवेश (Investment), समावेश (Infusion), और नवाचार (Innovation):
- निवेश: भारत को बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य और उत्पादन क्षमता में GDP का कम से कम 40% निवेश करना होगा। इससे रोज़गार और आय दोनों में वृद्धि होगी।
- समावेश: हमें वैश्विक व्यापार से गहराई से जुड़ना होगा। विदेशी निवेश के लिए दरवाज़े खोलने होंगे, और छोटे उद्योगों को विश्व बाजार में लाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
- नवाचार: केवल ‘जॉब सीकर्स’ नहीं, बल्कि ‘जॉब क्रिएटर्स’ तैयार करने होंगे। इसके लिए तकनीकी शिक्षा, अनुसंधान, और स्टार्टअप कल्चर को प्राथमिकता देनी होगी।
यदि हम इन तीन स्तंभों को मज़बूती से थामें, तो भारत 2047 तक न सिर्फ़ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है, बल्कि एक उच्च-आय देश भी बन सकता है—जहाँ समृद्धि हर नागरिक की दहलीज़ तक पहुँचे।
लेकिन यदि यह मौका हाथ से निकल गया, तो हम भी उन 108 देशों की सूची में फंस सकते हैं जो वर्षों से ‘मिडिल-इनकम ट्रैप’ में ही अटके हुए हैं।
आज आवश्यकता इस बात की है कि देश का आर्थिक विकास आकंड़ों की चमक से निकलकर व्यक्ति के जीवन की चमक बने। गाँव, शहर, राज्य—हर स्तर पर योजनाएँ इस दृष्टिकोण से बनें कि आखिर आम आदमी की आमदनी कैसे बढ़े।
प्रधानमंत्री का यह आह्वान कि हर राज्य, हर गांव, हर शहर को विकसित बनना चाहिए, केवल भाषण नहीं, एक चुनौती है—और हर नीति-निर्माता को इसे निजी जिम्मेदारी समझनी होगी।
अब सवाल यह नहीं कि हम कितनी बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, सवाल यह है—क्या हर नागरिक आर्थिक रूप से सक्षम है?

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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