हर महानायक को एक दिन रुकना पड़ता है।
एम.एस. धोनी इस जुलाई में 44 वर्ष के हो जाएंगे। ज़्यादातर खिलाड़ियों के लिए यह उम्र खेल से विदाई की होती है। लेकिन कैप्टन कूल, अब भी मैदान में हैं, और चर्चा है कि वे अगले सीज़न में फिर चेन्नई सुपर किंग्स की कप्तानी करते दिख सकते हैं। मगर अब सवाल यह नहीं है कि धोनी खेल सकते हैं या नहीं, बल्कि यह है कि क्या उन्हें अब भी खेलना चाहिए?

इस साल के आईपीएल में धोनी ने साहस तो दिखाया, लेकिन वे अपने पुराने रूप की छाया भर रह गए। उनका बल्ला, जो कभी गेंदबाज़ों के होश उड़ाया करता था, अब धीमा हो गया है। एक भी अर्धशतक नहीं। वो चमत्कारी फिनिशिंग शॉट्स अब खो चुके हैं। विकेट के पीछे की फुर्ती भी अब पहले जैसी नहीं रही।
हेलीकॉप्टर शॉट, जो धोनी की पहचान बन गया था, अब शायद केवल यादों में ही बाकी है।
पर जो अब भी कायम है, वह है धोनी के लिए लोगों का प्यार। हर बार जब वे बल्लेबाज़ी करने उतरते हैं, स्टेडियम “धोनी-धोनी” से गूंज उठता है। यह शोर सिर्फ़ वर्तमान का नहीं, बल्कि उनकी गौरवशाली अतीत की गूंज है।
लेकिन हर महान यात्रा का एक पड़ाव होता है।
धोनी को कुछ साबित करने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने भारत को दो वर्ल्ड कप दिए, अनगिनत मैच जिताए, करोड़ों लोगों को प्रेरित किया, और एक पूरे क्रिकेट युग की परिभाषा बदल दी। वे कप्तान थे, फिनिशर थे, मार्गदर्शक थे—और हैं।
लेकिन शायद अब वह समय आ गया है जब उन्हें यह कहानी खुद अपने हाथों से समेटनी चाहिए।
इस साल सीएसके का प्रदर्शन फीका रहा, और धोनी का योगदान सीमित। हां, वो अब भी खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा हैं—एक मैच में 14 वर्षीय बल्लेबाज़ वैभव सूर्यवंशी ने उनके पैरों को छूकर यह भाव जाहिर किया। यह दृश्य भावुक कर देने वाला था—एक ऐसी विरासत की झलक जो धोनी छोड़कर जाएंगे।
पर क्या सम्मान के इन पलों के नाम पर खेलते रहना सही है?
क्रिकेट—खासकर आईपीएल जैसा तेज़ और थकाऊ फॉर्मेट—भावनाओं से नहीं चलता। यहां प्रदर्शन ही पहचान बनाता है। और सच तो यह है कि, अब धोनी की उपस्थिति, टीम को उस ऊर्जा और धार के साथ आगे नहीं ले जा रही जो कभी उनका पर्याय थी।
तेंदुलकर और गांगुली जैसे दिग्गजों ने खुद ही समय पर संन्यास ले लिया था। वे जानते थे कि खेल में कब कदम पीछे खींच लेना चाहिए।
धोनी आज भी टीवी विज्ञापनों में चमकते हैं, स्टेडियम में तालियां बटोरते हैं, लेकिन शायद अब मैदान से विदाई का समय आ गया है—खुद के सम्मान और प्रशंसकों की यादों की गरिमा बनाए रखने के लिए।
कैप्टन कूल का यह आख़िरी अध्याय भी उन्हीं के अंदाज़ में होना चाहिए—शांत, गरिमामय, और पूरे देश की तालियों के साथ।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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