ग्रामीण भारत में विकास की असली परीक्षा सड़क या बिजली से नहीं, बल्कि शिक्षा से होती है। छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले में आठ स्कूलों के लिए 6.19 करोड़ रुपये की स्वीकृति इसी कसौटी पर परखी जानी चाहिए। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस परियोजना को जिस गंभीरता से आगे बढ़ाया है, वह केवल इमारत बनाने का कार्यक्रम नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अवसर देने का प्रयास है।
ईंटों से आगे का सपना
CSR फंड से स्वीकृत यह राशि दिखाती है कि निजी और सरकारी संसाधनों को मिलाकर शिक्षा में बदलाव लाया जा सकता है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि इन पैसों का इस्तेमाल सिर्फ़ ढांचागत निर्माण तक सीमित न रह जाए। जशपुर के बांस-बहार, गरिघाट या दुलदुला जैसे इलाकों में जब बच्चे नई इमारतों में पढ़ेंगे, तो यह केवल दीवारें नहीं होंगी, बल्कि भविष्य की नींव होंगी।
स्थानीय जवाबदेही, वैश्विक सोच
धन सीधे डिजिटल माध्यम से जारी होना और स्थानीय एजेंसी को ज़िम्मेदारी देना, दोनों मिलकर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं। इससे यह भी संकेत मिलता है कि सरकार विकास को ऊपर से थोपने के बजाय स्थानीय हाथों में सौंपना चाहती है। यही तरीका लंबे समय तक टिकाऊ नतीजे देता है।
ग्रामीण शिक्षा: बराबरी का रास्ता
आज सबसे बड़ा खतरा यह है कि शहरी और ग्रामीण भारत के बीच की खाई और चौड़ी हो रही है। अच्छी इमारतें और संसाधन वहीं तक सीमित रह जाते हैं जहाँ पहले से अवसर मौजूद हैं। जशपुर की पहल इस खाई को पाटने का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण कदम है। जब गाँव का बच्चा भी वैसी ही आधुनिक इमारत में पढ़ेगा जैसी शहरों में हैं, तो उसके सपने छोटे नहीं रहेंगे।
मुख्यमंत्री की प्राथमिकता या राजनीति?
निश्चित रूप से यह सवाल उठ सकता है कि क्या यह सब केवल राजनीति है। लेकिन इस पहल का असर तात्कालिक वोटों से कहीं आगे तक जाएगा। यह उस नेतृत्व का उदाहरण है जो समझता है कि असली विकास मानव पूंजी में है। विष्णु देव साय की इस दृष्टि को तभी सही मायनों में सराहा जाएगा जब यह मॉडल राज्य के अन्य हिस्सों में भी दोहराया जाए।
निष्कर्ष: इमारत से आगे, उम्मीद तक
जशपुर में बन रही नई स्कूल इमारतें केवल सरकारी परियोजना नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की कहानी बन सकती हैं। शिक्षा अगर सचमुच बराबरी का हथियार है, तो यह निवेश सिर्फ़ बजट का आंकड़ा नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए रास्ता है।
मुख्यमंत्री साय ने यह दिखाया है कि CSR और सरकारी इच्छाशक्ति को मिलाकर शिक्षा को विकास का केंद्र बनाया जा सकता है। अगर यही सोच आगे भी कायम रही तो यह पहल जशपुर तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के लिए शिक्षा का नया अध्याय खोलेगी।
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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