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दीपक कुमार त्यागी / हस्तक्षेप
वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक
मानसून सीजन की बारिश के प्रचंड प्रकोप के चलते जगह-जगह नदी-नाले जबरदस्त उफान पर हैं। झील, तालाब, पोखर आदि बरसाती पानी से लबालब हो गये हैं। जबरदस्त जलभराव व मलबे की मार के चलते गली मौहल्लों की सड़कें व रिहायशी इलाके तक भी जानलेवा नालों में बदल गये हैं। जिसके चलते ही देश के विभिन्न राज्यों से पिछले कुछ दिनों से लोगों के जान-माल की तबाही की झकझोर देने वाली तस्वीरें आ रही हैं। शासन-प्रशासन सिस्टम कुदरत की मार के आगे बेबस व लाचार होकर के पूरी तरह से नतमस्तक नज़र आ रहा है। लोगों को जल प्रलय के बीच से सुरक्षित निकाल करके तत्काल राहत देना बेहद दुष्कर कार्य साबित होता जा रहा है। कुदरत की मार से प्रभावित हुए लोगों के लिए बिजली, पानी, भोजन, चिकित्सा व सर ढंकने के लिए एक सुरक्षित स्थान उपलब्ध करवाना सिस्टम के लिए चुनौती बनता जा रहा है। जिसके चलते ही उत्तर भारत के बहुत सारे इलाकों के लोग बाढ़ जैसे हालातों में रहने के लिए मजबूर हो गये हैं।
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कभी भीषण गर्मी के प्रकोप को झेल रहा उत्तर भारत मानसून का बहुत ही बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, लोगों को उम्मीद थी कि मानसून उनको राहत देगा, लेकिन मानसून के सीजन में जब बारिश को लोगों को प्रचंड गर्मी से राहत देनी थी, उस वक्त लोगों के लिए बारिश एक बहुत बड़ी आफ़त बन गयी। जल प्रलय से जगह-जगह नदी-नालों में हो रहे भारी उफान ने जलभराव, जबरदस्त भू कटाव व मलबे ने बड़ी आफ़त देने का कार्य कर दिया। पिछले कई दिनों से देश के विभिन्न हिस्सों में बादलों की प्रचंड गर्जना के साथ पहाड़ से लेकर मैदान तक हर तरफ कुदरत की मार के चलते भंयकर तबाही का मंजर बन गया है, जिसने लोगों को बेघर करते हुए 19 लोगों के अनमोल जीवन को लीलने का दुखद कार्य कर दिया है। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों में इस बार जुलाई माह में अपेक्षाकृत ज्यादा हो रही बारिश ने लोगों को जीना-बेहाल करके रखा दिया है।
हालांकि केन्द्र व राज्य सरकार प्रभावित लोगों को राहत देने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है, लेकिन भारी तबाही के चलते वह प्रयास फिलहाल तो ‘ऊंट के मूंह में जीरा’ साबित हो रहे हैं। बारिश के चलते हुई भारी तबाही नित-नयी दर्दनाक पिक्चर लेकर आ रही है, बारिश की मार से अब तो लोगों को भारी जान-माल की क्षति उठानी पड़ रही। लोग सरकार व एक दूसरे के सहयोग से इस आपदा को मात देने में लगें हुए हैं। भारी बारिश के चलते व डैम से अधिक पानी छोड़े जाने के चलते राजधानी दिल्ली पर वर्ष 1978 की तरह बाढ़ आने का खतरा मंडराने लगा है, यमुना नदी लगातार खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में नदियां व बरसाती नाले अपने जबरदस्त उफान पर है, जो भी कुछ उनकी राह में बाधक बन रहा है वह तिनके की तरह उसको बहाकर ले जाने पर आमादा हैं, पहाड़ों पर भू-कटाव, भू-धंसाव, दरकते पहाड़, भूस्खलन, पत्थरों के बड़े-बड़े बोल्डर व मलबा लोगों के जान माल के दुश्मन बन गये हैं। वहीं मैदानी इलाकों कि बात करें तो दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान आदि राज्यों में आबादी के इलाकों में भी पानी भर गया है जिसमें कहीं सड़क धंस गई है, तो कहीं भवनों की दीवार गिरने के चलते लोगों को जान-माल का नुक़सान उठाना पड़ रहा है, वहीं भीड़-भाड़ वाले इलाकों में तो भीषण जाम के झाम ने लोगों, जानवरों व अन्य जीव-जंतुओं तक का जीना मुहाल कर दिया है। इस वर्ष जुलाई माह में हुई रिकॉर्ड तोड़ बारिश बार-बार अमरनाथ, चार धाम व कांवड़ यात्रा में व्यवधान उत्पन्न करने का कार्य कर रही है, इन करोड़ों धार्मिक यात्रियों को सुरक्षित यात्रा करवाकर घर पहुंचाने की चुनौती से केन्द्र व राज्य सरकारें निरंतर जूझ रही हैं। मौसम के माध्यम से वर्षों बाद एक बार फिर से प्रकृति ने धरावासियों को यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि या तो प्रकृति के साथ सामंजस्य करके जीना सीख लो या फिर आने वाले समय में हर वर्ष भारी जान-माल की तबाही के लिए तैयार रहो।
।। जय हिन्द जय भारत ।।
।। मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान ।।
![This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)](https://canontimes.com/wp-content/uploads/2023/04/155-1_uwp_avatar_thumb.png)
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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