भारत की राजनीति और विकास यात्राओं में अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या कोई राज्य केवल उद्योग लगाने या सड़क बनाने तक सीमित रह सकता है, या फिर उसे भविष्य की अर्थव्यवस्था में अपनी ठोस पहचान बनानी चाहिए। इसी मोड़ पर मध्य प्रदेश ने हाल ही में एक साहसिक कदम उठाया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की जर्मनी यात्रा अब ठोस परिणाम देती दिख रही है। जर्मनी की पाँच प्रमुख टेक्नोलॉजी कंपनियाँ मध्य प्रदेश आ रही हैं और यह दौरा किसी सामान्य निवेश रोडशो से कहीं बड़ा संदेश देता है।
मुद्दा केवल निवेश लाने का नहीं है, बल्कि यह है कि मध्य प्रदेश खुद को वैश्विक नवाचार मानचित्र पर दर्ज कराना चाहता है। जर्मन कंपनियाँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और डेटा टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में काम कर रही हैं। उनका सामना जब इंदौर और भोपाल जैसे शहरों के स्टार्टअप्स से होगा, तो यह टकराव नहीं बल्कि एक नए युग की साझेदारी का आरंभ होगा।
कार्यक्रम में इंडस्ट्री-एकेडेमिया संवाद, इनक्यूबेशन विज़िट और नीतिगत चर्चा शामिल हैं। इससे साफ है कि सरकार केवल निवेश की गिनती करने के बजाय लंबी अवधि का इकोसिस्टम बनाना चाहती है। असली परीक्षा यह होगी कि क्या ये मुलाकातें स्थायी ढाँचे में बदल पाएंगी या फिर अन्य राज्यों की तरह कागज़ी समझौतों तक ही सिमट जाएंगी।
इस पहल से तीन बड़ी उम्मीदें जुड़ी हैं।
- नवाचार का लोकतंत्रीकरण: यह अवसर केवल बड़े शहरों या चुनिंदा स्टार्टअप्स तक सीमित न रहे, बल्कि छोटे कस्बों और युवाओं तक पहुँचे।
- स्थिर नीति और दीर्घकालिक सोच: चुनावी बदलावों के बावजूद यह पहल जारी रहनी चाहिए।
- ज्ञान का आत्मविश्वास: प्रदेश के छात्रों और उद्यमियों को यह भरोसा होना चाहिए कि वे केवल तकनीक के उपभोक्ता नहीं, बल्कि उसके निर्माता भी बन सकते हैं।
भारत की नवाचार राजधानी अब तक बेंगलुरु, हैदराबाद या पुणे तक सीमित रही है। लेकिन मध्य प्रदेश यह दिखाना चाहता है कि एक टियर-2 राज्य भी वैश्विक साझेदारियों के जरिए भविष्य की तकनीकी क्रांति का केंद्र बन सकता है।
आने वाला सप्ताह महज़ कार्यक्रमों का सिलसिला नहीं, बल्कि संभावनाओं का मंच है। यदि यह प्रयास सही दिशा में आगे बढ़ा, तो मध्य प्रदेश आने वाले वर्षों में केवल “दिल का हिंदुस्तान” ही नहीं, बल्कि “डिजिटल हिंदुस्तान” का भी धड़कता दिल बन सकता है।
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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