बांग्लादेश: एक देश जो पैदा होना तय था, बस वक्त का इंतज़ार था
1971 में बांग्लादेश का बनना अचानक हुआ कोई राजनीतिक फैसला नहीं था। ये एक लंबे समय से चल रही ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक दरारों का नतीजा था — जो अपने सही मौके का इंतजार कर रही थीं। पूर्वी पाकिस्तान का पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाना तय था; बस जरूरत थी एक चिंगारी की, जो उस आग को भड़का दे।
🌏 भूगोल ने कर दिया बंटवारे का फैसला
पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान के बीच 2000 किलोमीटर से ज्यादा भारत की ज़मीन का होना किसी भी एकता के विचार को कमजोर कर देता था। ये दुनिया का शायद सबसे अजीब राजनीतिक नक्शा था, जहां एक देश दो हिस्सों में बंटा हुआ था, लेकिन उन दोनों के बीच एक और संप्रभु राष्ट्र (भारत) था। भूगोल ने एकता को नामुमकिन बना दिया था।

🔥 1971: जब इतिहास ने करवट ली
जब शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग ने चुनाव जीता, और इसके बावजूद उन्हें सत्ता नहीं सौंपी गई, तो लोकतंत्र की हत्या हुई। इसके बाद आई सैन्य कार्रवाई, अत्याचार और लाखों लोगों का भारत की सीमा में पलायन। भारत, जो पहले ही आंतरिक समस्याओं से जूझ रहा था, इस मानवीय संकट से अछूता नहीं रह सका।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने एक बड़ा फैसला था — क्या वो सिर्फ देखती रहें या हस्तक्षेप करें? उन्होंने दूसरा रास्ता चुना — और इतिहास बन गया।
⚔️ भारत की भूमिका: मददगार या रणनीतिक खिलाड़ी?
भारत का सैन्य हस्तक्षेप कई लोगों के लिए एक रणनीतिक चाल थी, पर उसके पीछे मानवीय भावना भी गहराई से जुड़ी थी। लाखों शरणार्थियों की मदद, पाकिस्तान की बर्बरता को रोकना, और पड़ोसी क्षेत्र में स्थिरता लाना — इन सब कारणों ने भारत को आगे बढ़ने पर मजबूर किया।
इस युद्ध में भारत की जीत ने न सिर्फ पाकिस्तान को विभाजित किया, बल्कि भारत को वैश्विक कूटनीति में एक नया स्थान भी दिलाया।
🤝 आज का रिश्ता: दोस्ती में दरार या दरार में दोस्ती?
इतिहास और संस्कृति की नज़दीकी के बावजूद, आज भारत और बांग्लादेश का रिश्ता उतना सीधा नहीं है। सीमा विवाद, जल वितरण और भारत के राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका जैसे मुद्दों ने संबंधों को जटिल बना दिया है।
बांग्लादेश का चीन की ओर झुकाव भारत के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। चीन, जो भारत का स्थायी रणनीतिक प्रतिद्वंदी है, बांग्लादेश में निवेश और सहयोग के ज़रिए अपना दबदबा बढ़ा रहा है — और इससे भारत की स्थिति चुनौतीपूर्ण हो रही है।
🧭 क्या भारत ने मौका गवां दिया?
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि 1971 में भारत अगर चाहता तो पूर्वी बंगाल को भारत में मिला सकता था — ठीक वैसे ही जैसे सिक्किम को मिलाया गया। इससे भारत का भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ता, और शरणार्थी संकट भी स्थायी रूप से हल हो सकता था।
लेकिन इंदिरा गांधी ने एक स्वतंत्र राष्ट्र को जन्म देने का फैसला किया — शायद इस उम्मीद में कि भविष्य में एक भरोसेमंद दोस्त तैयार होगा।
📜 1971 की विरासत: विजय, मगर अधूरी
बांग्लादेश ने खुद को साबित किया है — स्वतंत्रता के बाद विकास की राह पर आगे बढ़ते हुए। लेकिन भारत के लिए ये जीत उतनी सरल नहीं रही। पाकिस्तान को कमजोर करना भले ही एक रणनीतिक सफलता रही हो, पर इसके साथ-साथ कई अनसुलझे सवाल भी जुड़े रहे — जैसे शरणार्थी समस्या, सीमाई टकराव, और बांग्लादेश का धीरे-धीरे भारत के प्रभाव से दूर होना।
निष्कर्ष: जब भूगोल तय करता है, इतिहास सिर झुकाता है
बांग्लादेश का बनना तय था — भारत ने केवल उस प्रक्रिया को तेज किया। ये एक ऐसा फैसला था जिसमें मानवता, रणनीति और नेतृत्व — तीनों का मेल था।
बांग्लादेश का जन्म किसी योजना से नहीं, बल्कि वक्त की मांग से हुआ। भारत ने सिर्फ इतिहास को उसकी मंज़िल तक पहुंचाया।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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