प्रकाशनार्थ एक रचना
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पद खयाल में वर्षा गीत
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प्रिय को निहार कहती सुनारि जब लगातार बरसे बदरा।
पहले फुहार फिर धारदार फिर धुआँधार बरसे बदरा।।
वय के किशोर चितचोर छोर पर घटाटोप बरसे बदरा।।
हिय को हिलोर जिय को विभोर कर सराबोर बरसे बदरा।।
मुँहजोर घोर घनघोर शोर कर नशाखोर बरसे बदरा।
तब पोर पोरतक में हिलोर भर उठे जोर बरसे बदरा।।
किलकार मार शिशु सा पसार कर कलाकार बरसे बदरा।
ललकार मार तलवार धार बड़ अदाकार बरसे बदरा।।
प्रिय को निहार कहती ——–।।
नभ से भड़ाम गिरते धड़ाम जब धरा धाम बरसे बदरा।
जल से सकाम करते प्रणाम जय सियाराम बरसे बदरा।।
लख तामझाम कसके लगाम सच खुलेआम बरसे बदरा।
गिरती ललाम उठती न वाम जग उठा काम बरसे बदरा।।
नभ से उतार जल को सँवार जब धराधार बरसे बदरा।
सरकार हारकर तार तार कर गए छार बरसे बदरा।।
प्रिय को निहार कहती —— ।।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
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