भोपाल : मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत (नई दिल्ली) में हेड एंड नेक कैंसर सर्जन डॉक्टर अक्षत मलिक ने थायराइड कैंसर के बढ़ते खतरे के बारे में जानकारी. साथ ही इसके कारण से लेकर लक्षण और इलाज के बारे में भी बताया. थायराइड से संबंधित बीमारियां दुनिया भर में आम हैं.इनमें से ज्यादातर मामले हल्के होते हैं, और खतरनाक नहीं होते हैं. थायराइड के करीब 5 प्रतिशत मामले घातक हो सकते हैं. थायराइड कैंसर कई प्रकार के हो सकते हैं. इनमें सबसे आम थायराइड का पैपिलरी कार्सिनोमा कैंसर है. इसके अलावा अन्य थायराइड कैंसर में फॉलिक्युलर कार्सिनोमा, मेडुलरी कार्सिनोमा, एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा, लिम्फोमा हो सकते हैं.
क्या है थायराइड कैंसर का कारण
थायराइड कैंसर के कारण उसके प्रकार के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं. जैसे पैपिलरी कार्सिनोमा बचपन में रेडिएशन के संपर्क में आने के कारण हो सकता है, थायराइड कैंसर की फैमिली हिस्ट्री और कुछ आनुवंशिक कारणों से ये कैंसर हो सकता है. 25 प्रतिशत मामलों में मेडुलरी कार्सिनोमा पारिवारिक हो सकता है; ऐसे मामलों में यह MEN IIA और MEN IIB जैसे सिंड्रोम से जुड़ा होता है. इन मामलों में विशिष्ट जेनेटिक म्यूटेशन मौजूद होते हैं जो परिवार के जरिए एक-दूसरे में आगे जाते हैं. फॉलिक्युलर कैंसर और लिम्फोमा आयोडीन की कमी के कारण होता है. एनाप्लास्टिक कैंसर लंबे समय तक थायराइड सूजन की वजह से होता है. थायराइड कैंसर महिलाओं में आम हैं और 40-50 वर्ष के आयु वर्ग में ये ज्यादा सामने आता है.
थायराइड कैंसर के लक्षण
थायराइड कैंसर आमतौर पर गर्दन की सूजन के रूप में नजर आता है. इसमें एक जगह या उससे ज्यादा जगह भी सूजन हो सकती है. इसमें गर्दन की नोड में वृद्धि हो सकती है. मरीज में हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण हो सकते हैं जैसे- वजन बढ़ना, भूख में कमी, पसीने में कमी, ठंड बर्दाश्त न होना. थायराइड कैंसर या सूजन का पारिवारिक इतिहास हो सकता है. बचपन में रेडिएशन के संपर्क में आना या रेडियोथेरेपी के संपर्क में आने से भी थायराइड कैंसर हो सकता है. कभी-कभी लंबे वक्त तक रहने वाली थायराइड की सूजन का साइज तेजी से बढ़ने लगता है. ज्यादा सूजन होने या कैंसर की एडवांस स्टेज होने पर हवा की नली या खाने के पाइप सिकुड़ सकते हैं, जिससे सांस लेने या निगलने में परेशानी हो सकती है. कई बार आवाज में दिक्कत आती है. अगर थायराइड कैंसर हड्डी में फेल जाए तो मरीज को हड्डी में दर्द या फ्रैक्चर हो सकता है.
कैसे होता है डायग्नोज
थायराइड कैंसर के मरीज को गहन क्लिनिकल एग्जामिनेशन की जरूर पड़ती है. जांच में सूजन के साइज का पता लगाया जाता है. एंडोस्कोप के जरिए वोकल कॉर्ड भी चेक की जाती है क्योंकि वे नर्व सप्लाई से जुड़ी बीमारी के कारण प्रभावित हो सकती हैं. इसके अलावा थायराइड फंक्शन टेस्ट किए जाते हैं. इनमें टी 3, टी 4 और टीएसएच शामिल हैं. इसके अलावा गर्दन की अल्ट्रासोनोग्राफी जांच भी जरूरी होती है. इसकी मदद से, सूजन की लिमिट और उसकी प्रकृति का पता लगाया जाता है. साथ ही इससे थायराइड में लिम्फ नोड वृद्धि या कई छोटे नोड्यूल्स की उपस्थिति की पहचान करने में भी मदद मिलती है. थायराइड की सूजन से फाइन नीडल एस्पिरेशन साइटोलॉजी (एफएनएसी) की जाती है. इस प्रक्रिया के जरिए तैयार की गई स्लाइडों को माइक्रोस्कोप के नीचे देखा जाता है ताकि यह आकलन किया जा सके कि किस प्रकार की कैंसर कोशिकाएं मौजूद हैं. हालांकि, कई बार डायरेक्ट एफएनएसी से वैसा रिजल्ट नहीं मिलता है जिसकी उम्मीद होती है. ऐसे मामलों में, अल्ट्रासोनोग्राफी गाइडेड एफएनएसी की जाती है. अगर सूजन ज्यादा हो और छाती तक फैली हुई हो या भोजन और हवा की नली को सिकोड़ रही हो तो गर्दन और छाती का सीटी स्कैन भी कराया जा सकता है. वहीं, अगर कैंसर अन्य हिस्सों में फैल गया हो तो हड्डी स्कैन या पीईटी स्कैन भी किया जा सकता है.
क्या है इलाज
थायराइड का इलाज अलग-अलग फैक्टर पर निर्भर करता है. मरीज की उम्र, लिंग, सूजन का साइज, लिम्फ नोड मेटास्टेसिस या दूर मेटास्टेसिस की उपस्थिति के हिसाब से इलाज होता है.
आमतौर पर ज्यादा मामलों में सर्जरी को पसंद किया जाता है. मरीज के हिसाब से इलाज किया जाता है. थायराइड ग्लैंड की सर्जरी से हेमी-थायराइडेक्टोमी या टोटल थायराइडेक्टोमी हो सकती है. हेमी-थायराइडेक्टोमी में ग्लैंड का आधा हिस्सा हटा दिया जाता है. जबकि टोटल थायराइडेक्टोमी में पूरी ग्लैंड को हटा दिया जाता है. थायराइड ग्लैंड को हटाने के अलावा, गर्दन में मौजूद लिम्फ नोड्स को भी हटाने की जरूरत पड़ती है. अगर चेस्ट में लिम्फ नोड्स भी शामिल हैं तो उन्हें भी हटा दिया जाता है.
थायराइड की सर्जरी से कुछ दिक्कतें भी जुड़ी होती हैं. इसमें वोकल कॉर्ड पाल्सी/ या हाइपोकैल्सीमिया हो सकता है. अगर सर्जरी के दौरान वोकल कॉर्ड की सप्लाई करने वाली नर्व घायल हो जाए या बीमारी की के कारण उसे हटाना पड़ जाए तो आवाज में दिक्कत हो सकती है. यह समस्या अस्थायी या स्थायी दोनों तरह की हो सकती है. करीब 5 फीसदी से कम मामलों में स्थायी कॉर्ड पाल्सी की आशंका रहती है.
थायराइड की सर्जरी के दौरान अगर पैराथायराइड ग्रंथियों (कैल्शियम संतुलन से संबंधित) को ब्लड की सप्लाई पर असर पड़ता है तो मरीज को हाइपोकैल्सीमिया की शिकायत हो सकती है जिसमें कैल्शियम का ब्लड लेवल कम हो जाता है. यह समस्या भी अस्थायी या स्थायी हो सकती है और फिर कैल्शियम के सप्लीमेंट की जरूरत पड़ सकती है. अगर मरीज की कम्प्लीट थायराइडेक्टोमी की गई हो तो थायराइड हार्मोन के सप्लीमेंट की पूरी जिंदगी जरूरत पड़ सकती है.
कई बार मरीज को सर्जरी के बाद रेडियो-आयोडीन स्कैन और थेरेपी की जरूरत होती है. स्कैन करने से पहले मरीज को आयोडीन रहित डाइट पर रखा जाता है. अगर रेडियो-आयोडीन स्कैन में डिस्टैंट स्प्रेड या अवशिष्ट बीमारी का पता चलता है तो रेडियो-आयोडीन की जरूरत हो सकती है. रेडियो-आयोडीन थेरेपी के बाद आसपास के लोगों को रेडिएशन से बचाने के लिए कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत होती है. अगर सर्जरी में घाव पूरी तरह से नहीं ठीक हो पाए तो पोस्ट ऑपरेटिव रेडियो-थेरेपी की जरूरत पड़ती है. वहीं, अगर डिस्टैंट बोनी साइट्स में बीमारी फैल जाए तो रेडियो-थेरेपी भी दी जा सकती है.
आम तौर पर थायराइड कैंसर का प्रोग्नोसिस और सर्वाइवल अच्छा होता है. हालांकि, एनाप्लास्टिक थायराइड कैंसर का प्रोग्नोसिस थोड़ा खराब होता है. इस तरह के कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरेपी की जाती है. थायराइड कैंसर के मरीजों की हर 6 महीने या साल में समीक्षा की जाती है. बीमारी की निगरानी के लिए समय समय पर क्लिनिकल एग्जामिनेशन, अल्ट्रासोनोग्राफी और थायरोग्लोबुलिन की जाती है.
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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