“स्टील सिर्फ धातु नहीं, विकास का मेरुदंड है।”
भारत का स्टील उद्योग आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। उत्पादन के मामले में हम विश्व में चीन के बाद दूसरे स्थान पर हैं, और 2030 तक 300 मिलियन टन उत्पादन क्षमता का लक्ष्य तय कर चुके हैं। लेकिन सवाल यह है—क्या हमारी तैयारी भी उतनी ही मजबूत है, जितनी हमारी महत्वाकांक्षा?
🧱 स्टील: भारत की विकासगाथा का आधार
स्टील उन गिनी-चुनी सामग्रियों में से है, जो इन्फ्रास्ट्रक्चर, रक्षा, निर्माण, और परिवहन—हर क्षेत्र की नींव बनती हैं। इसीलिए इसे ‘विकास धातु’ भी कहा जाता है।
- 2024 में वैश्विक स्टील उत्पादन: 1,885 मिलियन टन
- भारत का हिस्सा: 150 मिलियन टन (दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक)
- वर्तमान क्षमता: 200 मिलियन टन
- 2023-24 की घरेलू खपत: 136 मिलियन टन
🔺 तेजी से बढ़ती खपत, लेकिन…
स्टील की घरेलू खपत हर साल 10-12% की दर से बढ़ रही है। उत्पादन भी इसी गति से बढ़ा है, लेकिन चिंता की बात यह है कि…
📈 स्टील आयात तेजी से बढ़ रहा है
- 2021-22: 4.6 मिलियन टन
- 2023-24: 8.3 मिलियन टन
- विशेष रूप से चीन, कोरिया और जापान से आयात में भारी उछाल आया है।
यह सवाल खड़ा करता है—जब हम खुद स्टील बना रहे हैं, तो हम आयात क्यों बढ़ा रहे हैं?
🏛️ सरकार की पहलकदमी: सही दिशा में लेकिन अपर्याप्त?
भारत सरकार ने कई योजनाएँ लागू की हैं:
- स्पेशियलिटी स्टील के लिए PLI योजना
- स्टील क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर
- स्टील इम्पोर्ट मॉनिटरिंग स्कीम
- डंपिंग विरोधी शुल्क और अन्य सुरक्षा शुल्क
लेकिन क्या ये उपाय तेजी से बढ़ते आयात और वैश्विक प्रतिस्पर्धा से निपटने के लिए पर्याप्त हैं?
🧩 सात बड़े सवाल—जो तय करेंगे भविष्य की दिशा
- क्या हमारे पास कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता है?
- 2030 तक हमें 450 मिलियन टन लौह अयस्क और 160 मिलियन टन कोकिंग कोल चाहिए।
- कोकिंग कोल के लिए भारत आज भी आयात पर निर्भर है।
- क्या स्टील की मांग इतनी ही तेजी से बढ़ेगी जितनी क्षमता?
- अधिक उत्पादन का कोई अर्थ नहीं अगर खपत न हो।
- क्या हम अतिरिक्त उत्पादन को निर्यात कर पाएंगे?
- वैश्विक बाजार पहले से ही ओवरकैपेसिटी और स्लो डिमांड से जूझ रहे हैं।
- क्या वित्तीय पूंजी उपलब्ध है इस विस्तार के लिए?
- एक अनुमान के अनुसार, अगले पाँच वर्षों में लाखों करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी।
- क्या यह विस्तार पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ होगा?
- 300 मिलियन टन की क्षमता का निर्माण कार्बन उत्सर्जन, जल उपयोग और भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों को जन्म देगा।
- क्या आयात पर निर्भरता से हम बाहर निकल पाएंगे?
- विशेष रूप से क्रोमियम, मैग्नीशियम और निकेल जैसी धातुओं के लिए हमारी निर्भरता चिंता का विषय है।
- क्या सभी हितधारक—सरकार, उद्योग, समाज—एकमत हैं?
- यह छलांग सिर्फ उद्योग की नहीं, एक राष्ट्रीय संकल्प की मांग करती है।
🔍 दृष्टिकोण: संभावनाएँ अपार, लेकिन संकल्प निर्णायक
भारत का स्टील सेक्टर ‘उत्पादन से प्रतिस्पर्धा’ की यात्रा पर है।
- सरकार की योजनाएँ उचित दिशा में हैं,
- लेकिन उन्हें नीति, पूंजी, नवाचार और पर्यावरण संतुलन से सशक्त करना होगा।
राजनीतिक इच्छाशक्ति, नीतिगत स्पष्टता, और सभी हितधारकों की भागीदारी—इन्हीं के सहारे भारत स्टील में अपनी ‘बड़ी छलांग’ को सफल बना सकता है।
✅ निष्कर्ष:
भारत तैयार है, लेकिन सिर्फ मशीनों और फैक्ट्रियों से नहीं—बल्कि एकजुट राष्ट्रीय संकल्प से।
300 मिलियन टन सिर्फ एक संख्या नहीं, यह भारत के औद्योगिक आत्मनिर्भरता की पहचान होगी।
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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