जब राष्ट्र पर हमला होता है, तो जवाब केवल बंदूकों से नहीं दिया जाता—कभी-कभी वह कूटनीति के शब्दों से भी ज़्यादा असरदार होता है।
पिछले महीने पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले और उसके बाद भारत की ओर से की गई ‘ऑपरेशन सिंधूर’ की निर्णायक कार्रवाई ने देश को एक बार फिर अपने सुरक्षा चिंताओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से रखने की आवश्यकता का एहसास कराया। इसी क्रम में सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का 32 देशों का दौरा एक कूटनीतिक आवश्यकता और राजनीतिक परिपक्वता का प्रतीक बन गया।

“पूरे राजनीतिक ताने-बाने का एक साथ आकर वैश्विक स्तर पर संवाद करना न केवल आतंकवाद के खिलाफ भारत की एकजुटता को दर्शाता है, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक ताक़त का भी प्रमाण है।”
इस लेखक ने उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनने का सौभाग्य पाया जो रूस, स्लोवेनिया, लातविया, ग्रीस और स्पेन गया। इस प्रतिनिधिमंडल में सभी प्रमुख दलों के सांसद शामिल थे—सत्ताधारी और विपक्ष दोनों के। हर देश में उच्चस्तरीय मुलाकातें हुईं—विदेश मंत्रियों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों, संसद की विदेश मामलों की समितियों, थिंक टैंक्स और भारतीय प्रवासी समुदाय के साथ।
“लगभग हर देश में भारत के प्रति गहरी सहानुभूति, समर्थन और आतंकवाद के खिलाफ हमारे रुख को स्पष्ट समर्थन मिला।”
बहस जरूर हुई कि इतने छोटे देशों का दौरा क्यों ज़रूरी था। लेकिन असल वजह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के समीकरण हैं—हर साल बदलने वाले गैर-स्थायी सदस्य, समितियों की अध्यक्षता और पाकिस्तान की वर्तमान सक्रियता को देखते हुए प्रत्येक संभावित सदस्य को समय रहते भारत का दृष्टिकोण समझाना ज़रूरी था। खासकर जब पाकिस्तान जुलाई 2025 में UNSC की अध्यक्षता करने जा रहा है और 1988 तालिबान समिति का नेतृत्व भी कर रहा है।
“UNSC में पाकिस्तान की बढ़ती सक्रियता के बीच भारत का यह कूटनीतिक संवाद भविष्य की किसी भी पाकिस्तान-प्रेरित साजिश को वैश्विक स्तर पर रोकने का एक अग्रिम कदम था।”
प्रत्येक मुलाकात में यह स्पष्ट किया गया कि भारत बातचीत के विरोध में नहीं है, लेकिन उसकी शर्त स्पष्ट है—“आतंकवाद का परित्याग और उसके ढांचों को खत्म करना।” इस रुख को अधिकांश देशों ने तार्किक और न्यायसंगत माना।
एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी रहा कि इन दौरों ने भारत के आर्थिक और रणनीतिक महत्व को भी उजागर किया। भारत को लेकर विश्व में एक स्पष्ट उत्सुकता है—एक उभरती अर्थव्यवस्था, तकनीक और इनोवेशन का केंद्र, और स्थिर लोकतंत्र।
“कई देशों ने स्पष्ट संकेत दिए कि वे भारतीय सांसदों के साथ सीधी बातचीत और द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत करना चाहते हैं।”
यह सवाल भी उठा कि क्या यह विदेश नीति सिर्फ घरेलू राजनीति के लिए थी? लेकिन यह मानना भूल होगी। विदेश नीति हमेशा आंतरिक मजबूती से उपजती है। भारत की यह पहल न केवल घरेलू सहमति का संकेत थी, बल्कि वैश्विक समाज को यह संदेश देने का माध्यम भी थी कि आतंकवाद के खिलाफ भारत अकेला नहीं, बल्कि एकजुट और दृढ़ है।
निष्कर्ष
“यह केवल एक कूटनीतिक यात्रा नहीं थी, बल्कि भारत के संप्रभु हितों की सुरक्षा के लिए वैश्विक समर्थन जुटाने की एक सुनियोजित रणनीति थी।”
सर्वदलीय प्रयासों ने भारत की ओर से एक स्पष्ट संदेश दिया—आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई न तो दलगत राजनीति का मुद्दा है और न ही सीमित कूटनीति का। यह राष्ट्र की सुरक्षा और वैश्विक शांति की साझी जिम्मेदारी है। दुनिया ने इस स्वर को गंभीरता से सुना है—और यही इस पहल की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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