जब सावन की फुहारें धरती को भिगोती हैं और हर कोना हरे रंग से सराबोर हो उठता है, तब छत्तीसगढ़ में बज उठती है एक परंपरा की पुकार — हरेली तिहार। यह सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि किसान की आस्था, संस्कृति की जड़ और समाज की चेतना का जीवंत प्रतीक है।
🌾 किसान का पर्व, परंपरा की पूजा
हरेली के दिन छत्तीसगढ़ का किसान नंगे पांव खेत की ओर बढ़ता है, पर हाथ में हल नहीं, बल्कि श्रद्धा और संरक्षण का संकल्प होता है। वह अपने कृषि औजारों को धोता, सजाता और उन्हें पूजता है — जैसे कोई योद्धा अपने शस्त्रों को प्रणाम करता है।
यह पर्व इस भावना का प्रतीक है कि खेती केवल जीविका नहीं, जीवन का आधार है। खेत सिर्फ अनाज नहीं उगाते, वे आत्मनिर्भरता और संस्कृति की जड़ें भी सींचते हैं।![]()
🛠️ सरकार की नीतियां और हरेली की संगति
छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल के वर्षों में कृषक-सशक्तिकरण को अपनी नीति का केंद्र बनाया है। समर्थन मूल्य पर रिकॉर्ड धान खरीदी, पुराने बोनस का भुगतान और कृषि यंत्र अनुदान जैसी योजनाएं, इस बात का संकेत हैं कि राज्य नीतिगत रूप से हरेली की भावना को जमीन पर उतार रहा है।
हर एकड़ के पीछे किसान की मेहनत है, और सरकार के निर्णयों ने उस मेहनत को अब आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक सम्मान दिया है।
🌿 वन, पशु और परंपरा का संगम
हरेली की सुंदरता केवल खेतों तक सीमित नहीं। इस दिन गांव के बच्चे गेड़ी चढ़ते हैं — बांस की बनी यह पारंपरिक कसरत न केवल खेल है, बल्कि शारीरिक स्फूर्ति और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक है।
यादव समुदाय द्वारा लाई गई वन औषधियाँ पशुओं को दी जाती हैं। यह लोक-जैविक चिकित्सा का अद्भुत उदाहरण है, जहाँ विज्ञान, अनुभव और श्रद्धा का मेल होता है।
🏡 गांव का आंगन, हरेली का रंगमंच
गांव की महिलाएं गुड़ का चीला बनाती हैं, बच्चे नीम की डालियां दरवाजे पर लगाते हैं, और घर-घर में देवी-देवताओं की पूजा होती है। लोहार, बढ़ई, बैगा, राउत – सभी समुदाय अपने-अपने योगदान से इस दिन को एक जीवित परंपरा में बदल देते हैं, जो न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक सहभागिता की मिसाल है।
✨ हरेली: भविष्य की जड़ें
जिस समय दुनिया कृत्रिम बुद्धिमत्ता और तकनीक की ओर बढ़ रही है, हरेली जैसे पर्व हमें याद दिलाते हैं कि स्थायित्व और संतुलन हमारी जड़ों में है। यह त्यौहार सिखाता है कि प्रकृति, परंपरा और प्रगति साथ चल सकते हैं।
निष्कर्ष: हरेली — हरियाली का आत्म-संवाद
हरेली तिहार, छत्तीसगढ़ के दिल की धड़कन है। यह न केवल मिट्टी की महक में रचा-बसा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़ने का सेतु भी है। जब किसान अपने औजारों को पूजता है, तब वह केवल खेती की शुरुआत नहीं करता — वह संस्कृति की पुनरावृत्ति करता है।
छत्तीसगढ़ का हरेली सिर्फ एक तिथि नहीं, एक दर्शन है — जहां परंपरा, प्रकृति और प्रगति एक साथ चलते हैं।
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
Authentic news.

