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Sunday, June 22, 2025, 11:21 am

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GDP की रफ्तार तेज़ है, लेकिन आम आदमी की आय?

GDP
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भारत आर्थिक ऊँचाइयों की ओर बढ़ रहा है — लेकिन क्या आम भारतीय भी साथ बढ़ रहा है या पीछे छूटता जा रहा है?

इन दिनों अखबारों और टीवी चैनलों पर भारत की अर्थव्यवस्था की प्रगति के चर्चे आम हो गए हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार भारत जल्द ही जापान को पछाड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। रिज़र्व बैंक ने भी ताज़ा आँकड़ों में चौथी तिमाही की विकास दर 7.4% बताई है। सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन सवाल यह है — क्या इन आँकड़ों से आम नागरिक का जीवन भी सुधर रहा है?

ऊँचे टॉवर, मगर नींव कमज़ोर

GDP यह बताता है कि एक देश में कुल कितना उत्पादन हुआ, लेकिन यह नहीं बताता कि उस उत्पादन का लाभ किसे मिला। जब देश की अर्थव्यवस्था ऊँचाई छू रही हो लेकिन आम आदमी की जेब खाली हो, तब हमें अपने जश्न पर थोड़ा विराम लेना चाहिए।

भारत का प्रति व्यक्ति आय आज भी महज़ $2,878 है। अमेरिका में यह $89,000 है, जर्मनी में $69,000, जापान में $34,000 और यहाँ तक कि चीन भी $15,678 के साथ भारत से कई गुना आगे है। इससे स्पष्ट है कि हम वैश्विक मंच पर भले ही ऊँचा स्थान पा रहे हों, लेकिन अपने नागरिकों को आर्थिक रूप से ऊपर उठाने में अभी बहुत पीछे हैं।

हरियाली ऊपर की, सूखा नीचे का

हम अक्सर मान लेते हैं कि जब देश का GDP बढ़ेगा तो इसका लाभ सबको मिलेगा। लेकिन हकीकत यह है कि विकास का फल उन्हीं तक पहुँचता है जो पहले से ऊँचाई पर हैं। गाँवों, छोटे शहरों और निम्न वर्ग के करोड़ों लोगों के लिए यह आर्थिक प्रगति काग़ज़ी आँकड़े मात्र हैं

क्या सच में सबका विकास हो रहा है?

  • क्या आम मजदूर की आमदनी बढ़ी है?
  • क्या युवा वर्ग को गुणवत्तापूर्ण नौकरियाँ मिल रही हैं?
  • क्या शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं में व्यापक सुधार हुआ है?

इन सवालों के जवाब हमें बताते हैं कि GDP की चमक में असल भारत कहीं गुम हो गया है

समय है सोच बदलने का

भारत की यह आर्थिक छलांग निश्चित रूप से गर्व की बात है। लेकिन अगर यह छलांग आम आदमी को पीछे छोड़ दे, तो यह जीत अधूरी रह जाती है। अब ज़रूरत है:

  • GDP के आँकड़ों से आगे बढ़कर प्रति व्यक्ति आय को प्राथमिकता देने की।
  • समान अवसर, न्यायपूर्ण आय वितरण, और आर्थिक समावेशन को नीति का केंद्र बनाने की।

क्योंकि एक देश की असली ताकत उसकी जनता की स्थिति में झलकती है, न कि केवल उसके आँकड़ों में।

 


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