तेज प्रताप पर कार्रवाई: लालू की सख्ती और एक ज़रूरी सन्देश
तेज प्रताप यादव को RJD से छह साल के लिए निष्कासित करना कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं था।
25 मई को राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे और हसनपुर विधायक तेज प्रताप यादव को पार्टी से छह वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया। यह निर्णय भले ही अचानक प्रतीत हो, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि लंबे समय से तैयार हो रही थी। तेज प्रताप के असंयमित व्यवहार, विवादित बयानों और पार्टी के लिए शर्मिंदगी का कारण बनने वाले कई घटनाक्रमों ने अंततः इस फैसले को अपरिहार्य बना दिया।

हालिया विवाद की जड़ तेज प्रताप द्वारा फेसबुक पर साझा की गई एक तस्वीर है, जिसमें वे एक महिला के साथ दिख रहे हैं और दावा किया गया कि वे 12 वर्षों से उसके साथ संबंध में हैं। समस्या यह है कि तेज प्रताप अब भी कानूनी रूप से पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की पोती ऐश्वर्या राय के पति हैं। दोनों की शादी 2018 में हुई थी, जिसे राजनीतिक वंशवाद का प्रतीक माना गया था, लेकिन यह रिश्ता जल्द ही टूट गया और तलाक की प्रक्रिया अब भी जारी है।
हालांकि तेज प्रताप ने दावा किया कि उनका सोशल मीडिया अकाउंट हैक हुआ था, लेकिन लालू यादव ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। वर्षों से पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाले तेज प्रताप के व्यवहार ने इस बार परिवार और पार्टी, दोनों का धैर्य तोड़ दिया।
तेजस्वी यादव समेत पूरे परिवार ने इस कार्रवाई का समर्थन किया है, जो यह दर्शाता है कि पार्टी अब अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं करेगी, भले ही वह ‘पहले परिवार’ का सदस्य ही क्यों न हो।
निजी और सार्वजनिक जीवन की सीमा
तेज प्रताप की स्थिति सिर्फ निजी जीवन से जुड़ी नहीं है। भारत जैसे समाज में निजी नैतिकता और सार्वजनिक छवि को अलग-अलग करके नहीं देखा जाता, खासकर जब कोई व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत जीवनशैली को सार्वजनिक मंचों पर उजागर करता हो। यदि तेज प्रताप थोड़ा संयम बरतते, तो शायद मामला इतना नहीं बिगड़ता। पर सार्वजनिक जीवन में सामाजिक मर्यादाओं का ध्यान रखना आवश्यक होता है।
पार्टी हित बनाम व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा
तेज प्रताप को यह समझना चाहिए था कि वे केवल एक विधायक नहीं, बल्कि पार्टी के संस्थापक परिवार के सदस्य हैं। उनसे अपेक्षा थी कि वे सार्वजनिक व्यवहार में अधिक जिम्मेदारी दिखाएं। लेकिन उनके बेतुके बयान और अस्थिर छवि ने RJD को बार-बार मुश्किल में डाला है। ऐसे समय में जब बिहार में विधानसभा चुनावों की तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं, विपक्ष को मौका देना पार्टी के लिए आत्मघाती कदम होता।
लालू यादव की यह कार्रवाई न केवल एक अनुशासनात्मक कदम है, बल्कि यह उन सभी नेताओं के लिए चेतावनी है जो खुद को अति-विशेष मानने की भूल करते हैं। राजनीति में निजी महत्वाकांक्षा से ज़्यादा ज़रूरी होता है पार्टी का हित—जब तक कोई बुनियादी सैद्धांतिक टकराव न हो।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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