‘बढ़ती महंगाई“
आज नरेंद्र मोदी सरकार की विफल नीतियों के कारण ‘‘बढ़ती महंगाई“ का साया भारतीय घरों पर गहराया हुआ है और इसका सबसे अधिक असर गृहणियों पर पड़ रहा है। ये अनसुनी नायिकाएं, जो परिवार, वित्त और कल्याण के बीच संतुलन बनाती हैं, लगातार बढ़ती कीमतों के तूफान में जूझ रही हैं। यह पत्रकार वार्ता गृहिणियों की दुर्दशा और उनकी पीड़ा के सत्य की आवाज़ को बुलंद करने के लिए है, जिसमें निम्न मुद्दों को उठाया गया है :-
मूल्य वृद्धि :-
सब्जियां : टमाटर, जो कभी खाने की मुख्य चीज हुआ करता था, उसकी कीमत लगभग हो गई है, 40 रू. प्रतिकिलो से 70 रू. प्रतिकिलो तक। प्याज़ की कीमत भी आसमान छू रही जो 20 रू. प्रतिकिलो से 35 रू. प्रतिकिलो तक पहुंच गई है। यहां तक कि आलू की कीमत भी 15 रू. प्रतिकिलो से बढ़कर 25 रू. प्रतिकिलो हो गई है।
एलपीजी : अनगिनत रसोइयों की जीवन रेखा, एलपीजी सिलेंडर आज लगभग 1000 रू. से तक का मिल रहा है। यह वृद्धि बजट पर काफी दबाव डालती है, जिससे परिवारों को गैस के उपयोग में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे स्वास्थ्य और स्वच्छता प्रभावित होती है।
दालें : दालें, प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत, की कीमत में तेज वृद्धि देखी गई है। मूंग दाल, जो एक लोकप्रिय विकल्प है, इसकी कीमत 70 रू. प्रतिकिलो से बढ़कर 90 रू. प्रतिकिलो हो गई है। अरहर दाल, जो कई क्षेत्रीय व्यंजनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, की कीमत में और भी अधिक वृद्धि देखी गई है, जो 100 रू. प्रतिकिलो से 130 रू. प्रतिकिलो तक पहुंच गई है।
तेल : खाना पकाने का तेल, जो रसोई की एक जरूरी चीज है, इसकी कीमत लगातार बढ़ रही है। व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला सूरजमुखी तेल, इसकी कीमत 120 रू. प्रति लीटर से बढ़कर 150 रू प्रति लीटर हो गई है, जबकि सरसों के तेल में और अधिक तेजी से वृद्धि देखी गई है, जो 180 रू. प्रति लीटर से 220 रू. प्रति लीटर तक पहुंच गई है।
कठोर वास्तविकता :-
घटते बजट : खाद्य पदार्थों, ईंधन और बुनियादी जरूरतों जैसी आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें आय वृद्धि को पछाड़ रही हैं, जिससे गृहिणियों के बजट सिकुड़ रहे हैं।
मुश्किल विकल्प : उन्हें कई कठिन विकल्पों का सामना करना पड़ता है, अपनी ‘खुद जरूरतों का त्याग करना या अपने परिवारों के लिए भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की गुणवत्ता और मात्रा कम करना।’
मानसिक और भावनात्मक तनाव : सीमित साधनों में प्रबंधन करने का लगातार दबाव, ढ़ी कीमतों की चिंता के साथ मिलकर, गृहिणियों के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है।
हम गृहिणियों के मौन संघर्षों से आंखें नहीं चुरा सकते। आज उनकी इस दुर्दशा पर मौन साधे प्रधानमंत्री पिछले 10 साल में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी उपाय लागू करने में विफल साबित हुए है, केंद्र सरकार आवश्यक वस्तुओं पर सब्सिडी या मूल्य नियंत्रण करने की जगह बड़े उद्योगपतियों का 10 लाख करोड़ पिछले 10 साल में ‘‘बैंक लोन राइट ऑफ़“ के माध्यम से माफ़ कर चुकी है। गृहणियों पर ‘‘बढ़ती महंगाई“ का बोझ आंकड़े बयां करते हैं।
उनकी पीड़ा को यदि आज कोई समझ रहा है तो वह देश में भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर रहे हमारे नेता राहुल गांधी जी है, जो ‘‘नीति संचालित’’ राजनीति के माध्यम से आम जान की तकलीफ़ों को हल करने का मार्ग प्रदर्शित कर रहें, आज देश भाजपा की मुद्दों से भटकाने वाली राजनीति के ख़लिफ़ एकजुट ता से लड़ाई लड़ रहा है।
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
Authentic news.