केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब मदुरै में यह दावा किया कि भाजपा 2026 के विधानसभा चुनाव में तमिलनाडु में सत्ता में आएगी, तो यह कथन सच्चाई से अधिक रणनीतिक आशा प्रतीत हुआ। 2021 में 234 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी महज़ चार सीटें ही जीत पाई थी और 2024 के लोकसभा चुनावों में पूरी तरह खाली हाथ रही। ऐसे में तमिलनाडु में भाजपा की चुनावी महत्वाकांक्षाओं का दारोमदार अब उसके गठबंधन सहयोगियों पर है।
AIADMK की वापसी: एक मजबूरी या समझदारी?
भाजपा और AIADMK का दो साल बाद फिर से गठबंधन एक राजनीतिक समीकरणों को साधने वाला कदम है। लेकिन यह रिश्ता विश्वास से अधिक राजनीतिक गणना पर टिका है। AIADMK नेता एडप्पाडी के. पलानीस्वामी (EPS) की शर्तों के आगे झुकते हुए भाजपा ने क. अन्नामलाई को हटाकर नैनार नागेन्द्रन को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। इससे भाजपा की आंतरिक रणनीति में स्थायित्व की कमी और गठबंधन राजनीति की मजबूरी झलकती है।

गठबंधन की गांठें और संभावित संकट
भाजपा का सहयोगी PMK (पट्टाली मक्कल कッチी) आंतरिक कलह से जूझ रहा है, जिसमें रामदास पिता-पुत्र आमने-सामने हैं। DMDK की प्रमिला विजयकांत भी नाराज़ हैं, क्योंकि उनकी पार्टी को राज्यसभा में स्थान नहीं मिला। इतना ही नहीं, गठबंधन में OPS (ओ. पनीरसेल्वम) और टी.टी.वी. दिनाकरन जैसे नेताओं की भूमिका भी स्पष्ट नहीं है — यदि इन्हें बाहर रखा गया तो ये वोट-कटर साबित हो सकते हैं।
भाजपा-अन्नाद्रमुक कार्यकर्ताओं में असहमति
AIADMK कार्यकर्ताओं में यह आशंका प्रबल है कि भाजपा के साथ गठबंधन से अल्पसंख्यक वोट बैंक छिटक सकता है, जिससे DMK विरोधी लहर का लाभ भी कम हो जाएगा। दोनों दलों के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में आपसी तालमेल की कमी भाजपा के लिए बड़ा संकट बन सकती है।
विजय की राजनीति में एंट्री: ‘एक्स फैक्टर’
अभिनेता थलपति विजय की पार्टी ‘तमिऴग वेत्त्रि कषगम्’ की संभावित राजनीतिक एंट्री भाजपा और DMK दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण ‘X फैक्टर’ बनकर उभर सकती है। विजय का युवाओं और मध्यवर्ग पर अच्छा प्रभाव है, जिससे पारंपरिक दलों के समीकरण गड़बड़ा सकते हैं।
दिल्ली बनाम द्रविड़ राजनीति
DMK केंद्र सरकार पर तीन-भाषा नीति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भेदभाव, और जनसंख्या आधारित निर्वाचन क्षेत्र पुनर्निर्धारण जैसे मुद्दों को लेकर लगातार हमलावर रही है। तमिल जनता में यह भावना गहरी है कि उत्तर भारत की जनसंख्या वृद्धि की कीमत पर दक्षिण भारत को राजनीतिक प्रतिनिधित्व में कटौती झेलनी पड़ सकती है। भाजपा के सफाई देने के बावजूद मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और तमिल जनता संतुष्ट नहीं हैं।
निष्कर्ष: तमिलनाडु, भाजपा के लिए एक पहेली
उत्तर और पश्चिम भारत में लगातार जीत के बाद भाजपा की नजरें अब दक्षिण पर हैं। लेकिन तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहाँ भाजपा की विचारधारा, भाषा नीति, और सांस्कृतिक रुख से जुड़ी कई असहमतियाँ पहले से मौजूद हैं। ऐसे में केवल गठबंधन के भरोसे सत्ता में आने की उम्मीद जमीनी सच्चाई से कटे हुए आकलन की तरह लगती है।
तमिलनाडु की राजनीति गठबंधनों से नहीं, जनविश्वास से चलती है — और भाजपा को यह बात समझनी होगी कि हर राज्य की अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान होती है, जिसे नजरअंदाज कर सत्ता में पहुँचना नामुमकिन है।

Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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