ऊर्जा असुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसे संकटों से जूझती दुनिया के बीच भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक ऐसा मार्ग चुना है जो व्यावहारिक भी है और दूरदर्शी भी। इस दिशा में सबसे उल्लेखनीय कदम है प्रधानमंत्री सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना, जिसने न केवल घर-घर को रोशन करने का वादा किया है, बल्कि भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता की नई इबारत भी लिखनी शुरू कर दी है।
इस योजना का मूल विचार सरल है, फिर भी क्रांतिकारी प्रत्येक परिवार जो अपनी छत पर सोलर पैनल लगाता है, उसे हर महीने 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली मिलेगी। इसके लिए सब्सिडी, आसान ऋण और त्वरित क्रियान्वयन की व्यवस्था की गई है। लेकिन यह योजना सिर्फ बिजली बिल कम करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नागरिकों को उपभोक्ता से उत्पादक बनाने की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है।
रोशनी से सशक्तिकरण तक
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के अशोक अग्रवाल जैसे छोटे उद्योगपतियों के अनुभव इस बदलाव को जीवंत बनाते हैं। सौर पैनल लगाने के बाद उनका बिजली बिल लगभग शून्य पर आ गया और उनका व्यवसाय ऊर्जा लागत की अनिश्चितता से मुक्त हो गया।
इसी तरह कटघोरा के बिशेष मित्तल जैसे मध्यमवर्गीय परिवारों ने भी शुरुआत में संदेह किया, लेकिन कुछ ही महीनों में बिजली बिल खत्म होते ही उनका विश्वास पक्का हो गया। राज्य सरकार द्वारा ₹78,000 की सब्सिडी ने लागत को और सुलभ बना दिया। ये उदाहरण साबित करते हैं कि सौर ऊर्जा अब केवल अमीरों या पर्यावरण प्रेमियों की चीज़ नहीं रही, यह साधारण परिवारों के जीवन का हिस्सा बन रही है।
कल्याण से राष्ट्र निर्माण तक
इस योजना का महत्व केवल घरेलू राहत तक सीमित नहीं है। यह प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प की ठोस झलक है। यह योजना परिवारों के खर्च घटाती है, ग्रिड पर दबाव कम करती है और कार्बन उत्सर्जन घटाकर पर्यावरणीय जिम्मेदारी निभाती है।
गाँवों में जहां अब तक बिजली की किल्लत थी, वहीं अब किसान और ग्रामीण परिवार सौर ऊर्जा से आत्मनिर्भर हो रहे हैं। शहरों में लोग अतिरिक्त आय बचा पा रहे हैं। उद्यमियों को ऊर्जा कीमतों के झटकों से सुरक्षा मिली है और युवाओं के लिए सौर ऊर्जा उद्यमिता रोज़गार और नवाचार का नया क्षेत्र बन रही है।
ऊर्जा का नया संस्कार
सूर्यघर योजना को सिर्फ सब्सिडी कहकर समझना इसकी आत्मा से अन्याय होगा। यह एक सामाजिक अनुबंध भी है और पर्यावरणीय घोषणा पत्र भी। जिन छतों को अब तक केवल आश्रय समझा जाता था, वे आज समृद्धि के इंजन बन रही हैं।
यह भारत की ऊर्जा कहानी है जो अब सिर्फ सरकारी बैठकों में नहीं, बल्कि आम नागरिकों के घरों में लिखी जा रही है। यही इस योजना की सबसे बड़ी सफलता है नीति का रूपांतरण एक जनआंदोलन में।
2047 और आगे
भारत के विकसित राष्ट्र बनने का सपना केवल उद्योगों की मजबूती पर निर्भर नहीं है, बल्कि सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, जलवायु संरक्षण और सशक्त नागरिकों पर भी। प्रधानमंत्री सूर्यघर योजना इस सपने की आधारशिला है।
जब भारत की छतों पर सौर पैनल चमकेंगे, तब वे केवल तकनीकी ढांचे नहीं होंगे बल्कि हमारी आत्मनिर्भरता, सामूहिकता और नवाचार का प्रतीक होंगे।
संदेश साफ है दीया जलाना पुण्य है, लेकिन सूर्य को साधना भविष्य की नियति है।
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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