15 अगस्त की सुबह, दिल्ली का आसमान तिरंगे की रंगत में रंगा होगा। भीड़ में बैठी एक महिला, जो न राजनीति की दुनिया से है, न व्यापार के बड़े नामों में गिनी जाती है, फिर भी वहां मौजूद हर चेहरे जितनी ही अहम। यह हैं बलौद ज़िले के गबदी गांव की खिलेश्वरी देवांगन, जिन्हें अब सब “लखपति दीदी” कहकर पुकारते हैं।
संघर्ष की जमीन पर बोया गया बीज
कभी उनका घर खेतों में मज़दूरी करके चलता था। बारिश समय पर हो जाए तो चूल्हा जलता, वरना दिन भूख में कटते। ऐसे में सपने देखना भी विलासिता लगता था। लेकिन किस्मत तब बदली, जब उन्होंने दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) से जुड़ने का फ़ैसला किया।
यह कार्यक्रम बहुतों के लिए एक सहारा है, पर खिलेश्वरी ने इसे अपनी मंज़िल तक पहुंचने का ज़रिया बना लिया।
छोटे काम, बड़ी सोच
उन्होंने शुरुआत मुर्गी पालन और एक छोटी सी किराने की दुकान से की। धीरे-धीरे उन्होंने मछली पालन और सजावटी सामान के कारोबार में भी कदम रखा। हर कमाई का हिस्सा उन्होंने स्थायी संसाधनों में लगाया — नए पॉल्ट्री शेड, फ़ीडर और स्टॉक। नतीजा यह कि आज उनकी सालाना आय लगभग ₹4.6 लाख है, जो कभी उनके लिए असंभव लगता था।
सिर्फ अपनी नहीं, सबकी तरक्की
खिलेश्वरी का असली कमाल यह है कि उन्होंने अपने अनुभव को दूसरों के साथ बांटा। फाइनेंशियल लिटरेसी कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन के रूप में उन्होंने अपने इलाके की महिला स्वयं सहायता समूहों को ₹2 करोड़ से ज़्यादा का बैंक लोन दिलवाया। जहां कभी बैंक के नाम से लोग घबराते थे, वहां अब महिलाएं अपने कारोबार चला रही हैं।
वह मानती हैं कि योजनाओं ने उन्हें रास्ता दिखाया, लेकिन सफर उन्होंने अपने दम पर तय किया।
सम्मान से बड़ी जिम्मेदारी
लाल किले में उनका न्योता सिर्फ शोहरत नहीं, बल्कि इस बदलाव की पहचान है जो गांव की गलियों में चुपचाप हो रहा है। स्वतंत्रता दिवस पर जब प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करेंगे, तो खिलेश्वरी की कहानी उन अनकही क्रांतियों में शामिल होगी, जो भारत की असली ताकत हैं।
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
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