सृजन हमेशा देता है सकारात्मक ऊर्जा और रखता है बुरे विचारों से दूर – डीआईजी ललित शाक्यवार
सृजन रंग शब्द विषय पर चित्रकला विभाग द्वारा हुआ राष्ट्रीय कार्यशाला शुभारंभ
छतरपुर। महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय ,छतरपुर के चित्रकला विभाग द्वारा विश्वविद्यालय सभागार में सृजन रंग शब्द विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। इस कार्यशाला के उद्घाटन की अध्यक्षता की कुलपति प्रो. शुभा तिवारी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में छतरपुर रेंज के डीआईजी ललित शाक्यवार, कुलसचिव प्रो. एस.डी.चतुर्वेदी, प्रति कुलपति प्रो. डी पी शुक्ला, कला संकायाध्यक्ष प्रो. जे पी शाक्य विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
कार्यशाला का विषय प्रवर्तन करते हुए राष्ट्रीय कार्यशाला के संयोजक एवं चित्रकला विभागाध्यक्ष प्रो एसके छारी ने कहा कि इस कार्यशाला में दृश्य और श्रव्य कलाओं जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, कोलाज, फोटोग्राफी, मेंहदी, संगीत, गायन-वादन के साथ-साथ कविताओं के विषय बनाकर चित्र संयोजन एवं पोस्टर निर्माण प्रस्तुत किया जाना है। इस कार्यशाला में विद्यार्थियों को विविध कलाओं के व्यावहारिक ज्ञान के साथ साथ प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया जाना है। इस अवसर पर उन्होंने स्वरचित कविता मैं रंगों से खेलता हूँ प्रस्तुत की, जिसे सभी ने सराहा।
मुख्य अतिथि छतरपुर रेंज के डीआईजी ललित शाक्यवार ने कहा कि सृजन हमेशा लोगों को सकारात्मक ऊर्जा देता, बुरे विचारों से दूर रखता हैं। पीपीटी के माध्यम से उन्होंने अपने कुछ चित्रों का प्रदर्शन किया जिनमें थ्री डी पेंटिंग एवं महात्मा बुद्ध के अनेक संवेदनशील विषयों के चित्र प्रस्तुत किए। अपने व्यक्तिगत अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा कि मेरी जीवन यात्रा कला से जुड़ी हुई है। मेरा काम ऐसा है कि जो बहुत ही सांसारिक है, इसलिए शांति के पलों में कला से जुडऩा मुझे जीवंत रखता है ताकि अपनी कलाकृतियों को आपके सामने रख सकूं। उन्होंने स्पष्ट भी किया कि उनकी पेंटिंग के पीछे उनकी क्या सोच थी।
कार्यक्रम की अध्यक्ष कुलपति प्रो शुभा तिवारी ने कहा कि हमें बेहतर करने की उत्सुकता हो और अपने भीतर के बच्चे को जीवित रखना चाहिए। हमें इस बात से नहीं डरना चाहिए कि हमसे गलती हो जाएगी या हमारा उपहास उड़ाया जाएगा। हमें कला के माध्यम से भरपूर अभिव्यक्ति करनी चाहिए। कला इस जीवन में हमें इंसान बनाने का काम करती है। हमारी जिज्ञासा चारों तरफ फैली सुंदरता को देखने की प्रवृत्ति, हमें मानवता से जोड़ती है। हम सभी के भीतर एक आत्मा का तार है जिससे हम सब जुड़े हुए हैं। नई शिक्षा नीति में ज्ञान की विविधाताओं को जोड़ा गया है। इसका यही उद्देश्य है कि विज्ञान, कला तथा प्रबंधन इत्यादि सब जुड़े हुए हैं। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बहुत सुंदर रूद्र वीणा बजाते थे,आइंस्टाइन वायलिन बजाते थे। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि विज्ञान और कला की आत्मा एक है।
प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, ललित कला विभाग, जयपुर विश्वविद्यालय, राजस्थान ने ऑनलाइन माध्यम से अपनी प्रस्तुति दी। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि सुरेंद्र शर्मा सुमन , अकादमिक प्रभारी प्रो बहादुर सिंह परमार, प्रो मंजूषा सक्सेना, प्रो पीके जैन, प्रो. पी एल प्रजापति, प्रो गायत्री, डॉ अरविंद महलोनिया, सुश्री इफ्तिशाम खान, श्रीमती गरिमा मिश्रा, रमेश प्रभाकर, तकनीकी सहयोग राजकुमार विश्वकर्मा, अभिनव दुबे उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन नंदकिशोर पटेल ने किया तथा प्रो आर एस सिसोदिया ने सभी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया।
आज दूसरे दिन 7 जुलाई को प्रात: 11 बजे से विषय विशेषज्ञ डॉ. गुरुचरण सिंह, ललित कला विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, हरियाणा द्वारा कला की लाइव प्रस्तुति होगी।
Author: This news is edited by: Abhishek Verma, (Editor, CANON TIMES)
Authentic news.