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Friday, October 18, 2024, 7:06 am

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डीएपी की उपलब्धता के संबंध में सरकार की क्या योजना है: दिग्विजय सिंह 

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Bhopal::17 अक्टूबर 2024: देश में DAP की किल्लत सरकार की नीतियों के कारण है, वर्तमान में देश में 100 लाख टन DAP की आवश्यकता है जिसमे से देश में 4 लाख टन प्रति माह का उत्पादन होता ,इसके लिए कच्चा माल भी आयात करना पडता ,आयत में समस्या से 20 % करीब कम उत्पादन हुआ है बाकि लगभग 5 लाख टन DAP का आयात होता, तब जाकर हमारी आवश्यकता पूरी हो रही है।

• इस बर्ष देश में अप्रैल से अगस्त तक 16 लाख टन करीब DAP आया था जबकि इसी दौरान पिछले बर्ष 32.5 लाख टन का आयात हुआ था जो 16.5 लाख टन यानी 50 % कम है।

• मध्यप्रदेश में DAP की 9 लाख टन से ज्यादा की जरुरत है जिसके एवज में अभी तक मध्य प्रदेश में लगभग 4.5 लाख टन DAP आया है बाकि 5 से 6 लाख टन की कमी है।

• अगले 15 दिन मध्य प्रदेश के किसानो के लिए बेहद महत्वपूर्ण है बड़े रकबे में बुबाई एक साथ शुरू होगी। सरकार DAP की जगह NPK डालने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। DAP में 18 % नाइट्रोजन एवं 46% फास्फोरस होता है। यदि DAP की जगह NPK देते है तो 6 लाख टन DAP की कमी को पूरा करने के लिए 9 लाख टन NPK 12:32:16 की जरुरत रहेगी जबकि अभी तक कुल 3 लाख टन NPK आया है, पिछले साल से 1 लाख टन कम है। मतलब 350 रैक सिर्फ NPK चाहिए।

• यह बात का प्रमाण है की मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री जी के जिले मुरैना में 24,500 मीट्रिक टन डीएपी की डिमांड है। इसके मुकाबले किसानों के लिए महज 8,247 मीट्रिक टन डीएपी ही उपलब्ध है। मतलब कृषि मंत्री के क्षेत्र में 33 % आपूर्ति हुई है (25 सितम्बर को प्रकाशित खबर के अनुसार) जब कृषि मंत्री के क्षेत्र के ये हाल हैं तो बाकि जगह कितनी उपलब्धता हुई होगी इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।

• पहले तो आयात 50% कम हुआ, दूसरा मध्य प्रदेश सरकार ने अपनी डिमांड वास्तविक जरुरत से कम भेजी, तीसरा अग्रिम भण्डारण पिछले साल की तुलना में इस साल 3.51 लाख मीट्रिक टन डीएपी का कम हुआ। सरकार की APC की संभाग स्तर की पिछली बैठकों, कलेक्टरों के स्टेटमेंट देखिये वो सब कह रहे है की DAP की जगह दूसरे उर्वरक डाले तो सरकार बताये कि किसान कौन से उर्वरक डाले और उनकी गुणवत्ता की ग्यारंटी कौन लेगा? किसानों तो डीएपी की ही मांग कर रहे हैं।

• पूर्व में खाद की उपलब्धता सहकारी समितियों के माध्यम से कराई जाती थी जिससे किसानों को उनके गाँव में गुणवत्ता युक्त शासकीय दाम पर बिना किसी परेशानी के खाद उपलब्ध होता था किन्तु भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अपने लोगों को उपकृत करने के लिए खाद की लगभग आधी मात्र खुले बाज़ार में विक्री की छूट दे रखी है जिससे किसानों को शहर आकर महंगे दाम में खरीदना पड़ता है, परिवहन लागत लगती है, समय ख़राब होता है।

• खुले बाज़ार में विक्री से खाद के साथ अन्य सामग्री जैसे अन्य उर्वरक, कीटनाशक दवाई, टॉनिक, बीज, सल्फर, जिंक के अलावा ऐसे उत्पाद जो किसानों की आवश्यकता नहीं है उन्हें भी मजबूरन टैग करके खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है।

• सरकार खोखले दावा करती है कि किसानो को जीरो % ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराएँगे मगर जब किसानो को साख समितियों से खाद नहीं मिलेगा ,नगद ऋण नहीं मिलेगा तो फिर कैसे जीरो % ब्याज का फायदा किसानो को मिलेगा ? अभी तो उल्टा किसान की जेब से अतितिक्त पैसा जा रहा है।

• मध्यप्रदेश में रवि की फसल के लिए 22 लाख टन यूरिया की जरुरत है जबकि अभी 10-12 लाख मीट्रिक टन यूरिया की उपलब्धता है जैसे कि अक्टूबर माह मे 4.5 लाख टन यूरिया की मांग है किन्तु 2 लाख 90 हज़ार टन ही उपलब्ध हो पाया। आगामी माह मे भी इस कमी की पूर्ति होना असंभव है जिसके कारण अगला माह भी किसानों के लिए परेशानी का सबब बनेगा।

• सरकार द्वारा नेनो यूरिया और नेनो DAP का बड़े स्तर पर क्षेत्र मे प्रचार प्रसार दानेदार यूरिया और दानेदार DAP के विकल्प के रूप मे किया जा रहा है जबकि नेनो यूरिया और नेनो DAP का विगत वर्ष फसलों पर डालने पर वो प्रभाव नहीं देखा गया जो दानेदार यूरिया और DAP का होता है। नेनो यूरिया की एक बॉटल जो कि 500 ml की एक एकड़ के लिए पर्याप्त बताई जा रही है जिसमे 4 प्रतिशत नाइट्रोजन प्रदर्शित है मात्रा के आधार पर 20 ग्राम सक्रिय तत्व नाइट्रोजन है जिसकी कीमत 220 रुपये है जबकि एक बोरी यूरिया मे 20 किलो सक्रिय तत्व नाइट्रोजन है जिसकी कीमत 270 रुपए है इस प्रकार किसान को नेनो यूरिया का उपयोग अपने खेत मे करने पर कम मात्रा मे नाइट्रोजन तत्व कई गुना अधिक राशि मे मिल रहा है।

• इस बात को इस तरह समझना चाहिए कि गेंहू के एक हेक्टयर उत्पादन हेतु 120 kg नाइट्रोजन सक्रिय तत्व की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति हेतु 6 कट्टे यानि 260 kg दानेदार यूरिया की ज़रूरत होती है जिसकी कीमत लगभग 1620 रुपए आएगी जबकि नेनो यूरिया की 120 kg नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए लगभग 6000 बोतल की ज़रूरत पड़ेगी जिसकी कीमत लाखों मे होगी।

• विगत कई वर्षों से वैज्ञानिकों द्वारा फसलों पर 2 से 5 प्रतिशत यूरिया के घोल के छिड़काव की अनुशंसा की गई है जो कि प्रति एकड़ 2 kg यूरिया का छिड़काव खेतों मे करने का चलन कृषकों के बीच मे पूर्व से ही है जिसमे किसानों को केवल 12 रुपए की लागत आती है परंतु वहीं अगर 500 ml नेनो यूरिया खेतों मे छिड़काव किया जाता है जिसमे तत्व की मात्रा भी बहुत कम है साथ मे कीमत 220 रुपए है जो कि 20 गुना ज्यादा है और फसलों पर प्रभाव भी कम है।

 

हमारे सरकार से सवाल

 

• DAP की उपलब्धता के सम्बन्ध में सरकार की क्या योजना है?

• क्या सरकार अन्य उर्वरकों से NPK के तत्वों की पूर्ती करना चाहती है? इसके सम्बन्ध में सरकार की क्या कार्य योजना है?

• क्या अन्य उर्वरकों से पूर्ती हेतु सरकार द्वारा किसानों के बीच में जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया है?

• सरकार द्वारा अग्रिम भण्डारण योजना के अंतर्गत यूरिया DAP का अग्रिम भण्डारण क्यों नहीं कराया गया? यदि आनन् फानन में सरकार द्वारा उर्वरकों की उपलब्धता की जाती है तो गुणवत्ता की सुनिश्चितत्ता कैसे होगी?

• अगले 15 दिनों में गेंहू, चना, सरसों, आलू एवं प्याज की लगभग बुवाई हेतु किसान अपनी तैयारियों में लगा हुआ है जिसमे लगभग 90 प्रतिशत यानी लगभग 9 लाख मीट्रिक टन DAP की आवश्यकता है जिसकी समय पर पूर्ती नहीं होने पर फसलों का उत्पादन घटना तय है इसकी जवाबदेही किसकी होगी ?

• मध्यप्रदेश के सभी जिलों में लम्बे समय से एक ही जगह पर जमे हुए जिम्मेदार अधिकारीयों के कारण गुणवत्ता नियंत्रण की प्रक्रिया प्रभावित हो चुकी है एवं नकली और अमानक आदान (खाद, बीज, दवाई) की विक्री को बढ़ावा देकर किसानों को ठगा जा रहा है सरकार ऐसे अधिकारीयों पर क्यूँ मेहरबान है ?

• प्रति वर्ष रवि सीजन में 140 लाख हेक्टेयर से ज्यादा ज़मीन पर फसलों की बुवाई की जाती है सरकार, कृषि विभाग एवं प्रशासन उर्वरक उपलब्धता, वितरण एवं गुण नियंत्रण व्यवस्था कराने में पूर्णतः असफल है उर्वरक की उपलब्धता करवाना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है जिसमे सरकार पूर्णतः असफल रही है जिन किसानों के बल पर प्रदेश को 7 बार कृषि कर्मण्य पुरूस्कार मिला उन्ही किसानों द्वारा खाद मांगने पर उन पर लाठियां क्यों बरसाई जा रही हैं?

• नेनो यूरिया और नेनो DAP आदि को किसी भी उर्वरक के साथ जबर्दस्ती नहीं बेचा जा सकता है ऐसा आदेश भारत सरकार द्वारा जारी किया गया है क्या कारण है कि मध्य प्रदेश सरकार केंद्र सरकार के आदेश को धता बताते हुए नेनो यूरिया और नेनो DAP बेचने को उतारू है?

 

हमारी मांग

 

• मध्य प्रदेश सरकार केंद्र सरकार से DAP और जरुरी उर्वरको की स्पेशल डिमांड करे।

• प्रदेश के कृषि सचिव एवं कृषि उत्पादन आयुक्त को दिल्ली में उर्वरक उपलब्ध नही होने तक तैनात करे.ताकि समय से उर्वरक की व्यवस्था की जा सके।

• जिन क्षेत्रो में बुबाई पहले हो रही है वहा खाद की व्यवस्था पहले कराए.

• रैक प्रबंधन एवं हैंडलिंग को बढ़ाये ,ट्रांसपोर्टर्स बढ़ाये ताकि खाद को गाँवो / समितियों तक परिवहन किया जा सके।

• केंद्र सरकार का आदेश की किसी भी उर्वरक पर टैगिंग तुरंत रोके फिर भी मध्य प्रदेश में सभी जगह उर्वरको के साथ टैगिंग खुलेआम चल रही हैः .

• उर्वरक का लाइव स्टॉक जिले स्तर डिस्प्ले किया जाए ताकि किसानो को उलब्धता की जानकारी रहे।

• उर्वरको के मूल्यों को कंट्रोल करने के लिए उर्वरक खरीदी केन्द्रों पर एक एक अधिकारी नियुक्त किए जाए ताकि किसानो से कोई भी अधिक मूल्य की वसूली ना करे।

• जिन किसानो को उर्वरक नहीं मिल रहा है ,उनको होने वाले उत्पादन नुकसान की भरपाई सरकार द्वारा की जाए।

• अमानक और नकली उर्वरक रोकने के लिए सभी SSP/NPK कम्पनियों के स्पेशल 10-10 नमूने हमारे और मिडिया के सामने लाइव टेस्ट कराए जाए , क्योकि मध्य प्रदेश में SSP की गुणवत्ता पर कई प्रशन है ,आगर सरकार का कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नही है तो हम सबके सामने जाँच कराए।

• केंद्र सरकार द्वारा जितने भी SSP के नमूने गोदाम और फैक्ट्री से लिए गए उनमे से अधिकांश के रिजल्ट अमानक आये मगर राज्य सरकार की लैब में मानक कैसे आते है? इसकी जाँच के लिए कमेटी बनाई जाए।

• मूल्य के लिए निगरानी समिति का गठन हो, जिसमे किसान नेताओ को प्राथमिकता के साथ रखा जाए।

 

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री जीतू पटवारी ने कहा कि खाद संकट के लिए कौन जिम्मेदार?

 

• रबी सीजन प्रारंभ ही हुआ है और खाद के लिए मारामारी अभी से शुरू हो गई है। कई जगहों पर खाद दुकानों के बाहर लाइनें लगने लगी हैं तो कुछ जगह रतजगा हो रहा है। बोवनी के लिए सर्वाधिक मांग डीएपी की होती है और इसका ही संकट है। पूरे देश में किल्लत की स्थिति है। भारत सरकार से मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं हो रही है।

 

• अब मैं पिछले 36 से 40 घंटे में चर्चा में आई कुछ हेडलाइन पढ़ रहा हूं –

 

• शिवपुरी में टोकन नहीं मिलने पर किसानों ने किया चक्काजाम, तहसील के बाहर किया हंगामा; अधिकारियों की समझाइश पर माने

 

• आधार कार्ड रखकर सड़क पर सो रहे किसान, बोले 6 दिन के इंतजार के बाद मिल रही खाद; खाना-पीना भी हराम

 

खुरई कृषि उपज मंडी में खाद वितरण केंद्र के बाहर मंगलवार-बुधवार के दरमियानी रात खाद के लिए करीब 200 से ज्यादा किसान बिस्तर डालकर अपनी लाइन में सोते हुए नजर आए। यहां डीएपी खाद की कमी से किसान परेशान, खुरई मंडी में बिस्तर डालकर रातभर कर रहे इंतजार, कृषक विश्राम गृह में लगा ताला

 

• दमोह जिले में इस समय खाद को लेकर अफरातफरी मची हुई है। स्टॉक है, फिर भी किसानों को दिनभर कतार में खड़ा रहना पड़ रहा है। किसानों का आरोप है कि हम सुबह से रात तक कतार में खड़े रहते हैं और दूसरों को बिना कतार में लगे खाद दे दी जाती है। ये हाल पूरे जिले का है।

 

• सिवनी मालवा तहसील में जैसे-जैसे फसल की बुवाई का समय नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे डीएपी खाद की किल्लत के कारण किसानों की धड़कनें तेज होती जा रही हैं। बड़ी संख्या में किसान बुधवार सुबह 7 बजे से ही कृषि

 

उपज मंडी में खाद लेने के लिए पहुंच गए। सुबह 10 बजे तक इतनी भीड़ हो गई कि धक्का मुक्की शुरू हो गई।

 

आष्टा के चुपड़िया पंचायत के अंतर्गत आने वाले ग्राम केवखेड़ी, दुपाड़िया चुपड़िया, छापरी, चाचाखेड़ी व मालीखेड़ी की मिलाकर एक सोसायटी की समिति बनी है। यूरिया खाद की 6 बोरी की जरूरत, अभी 3 में ही करना

 

पड़ रहा है संतोष इटारसी में एक हफ्ते से डीएपी खाद नहीं, अभी 19 सितंबर के टोकन वालों को दी जा रही यूरिया-पोटाश

 

• गंजबासौदा के घटेरा समिति पर खाद की पूर्ति ना होने से किसान नाखुश, प्रबंधक बोला – ऊपर से ही कम सप्लाई• यह सभी जानकारियां पिछले 36 से 40 घंटे की हैं। इस आधार पर समझा जा सकता है कि मध्य प्रदेश में खाद को लेकर स्थिति खराब हो चुकी है। चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें कुछ भी नया नहीं है मध्य प्रदेश में हर साल ऐसे ही हालात दिखाई देते हैं।

 

अब सवाल सिर्फ यह है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच कृषि विकास को लेकर दौड़ रहा डबल इंजन आखिर चला कौन रहा है?

 

• क्योंकि अब तो केंद्र से खाद की आपूर्ति को समझने करने वाला केंद्रीय कृषि मंत्री भी मध्य प्रदेश का ही है।

 

• खुद को किसान पुत्र खाने वाले शिवराज सिंह जी चौहान क्या यह बताने की कृपा करेंगे कि मध्य प्रदेश के किसानों को इस साल खाद

 

की परेशानी क्यों हो रही है?

 

गेहूं की MSP केवल 150 ही क्यों बढ़ाई?

 

ऊंट के मुंह में जीरे की बात अब पुरानी हो गई, डेढ़ सौ रुपए देकर भाजपा सरकार बौराई जैसे ऊंट के मुंह में जाकर, राई भी शरमाई

 

मध्यप्रदेश के किसानों की समस्याएं केंद्र सरकार द्वारा रबी की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में किए गए मामूली बढ़ोतरी के फैसले से और भी जटिल हो गई हैं। यहाँ की कृषि प्रणाली और किसानों की विशिष्ट चुनौतियों के

 

आधार पर, यह MSP बढ़ोतरी किसानों की समस्याओं को हल करने के बजाय

 

उन्हें और गंभीर बना रही है।

 

मैं सरकार को बताना चाहता हूं कि –

 

महंगी खाद्य सामग्री और ग्रामीण महंगाई :

 

ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई लगातार बढ़ रही है। खाद्य सामग्री, ईंधन और अन्य दैनिक

 

उपयोग की वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से किसानों की जीवनयापन लागत भी

 

बढ़ी है। MSP में मामूली वृद्धि उनकी खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है,

 

जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

 

खराब मॉनसून और सिंचाई की चुनौतियाँ :

 

मध्यप्रदेश के किसान बड़े पैमाने पर मानसून पर निर्भर हैं, जबकि राज्य में सिंचाई

 

की सुविधाएं पूरी तरह विकसित नहीं हैं। कई इलाकों में बारिश का असमान

 

वितरण होता है, जिसके कारण किसानों को अपने खेतों की सिंचाई के लिए निजी

 

साधनों, जैसे डीजल पंप या ट्यूबवेल पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके

 

परिणामस्वरूप सिंचाई की लागत काफी बढ़ जाती है। MSP में मामूली बढ़ोतरी

 

इस बढ़ी हुई लागत को कवर नहीं कर पाती, जिससे किसानों को घाटा झेलना

 

पड़ता है।उर्वरक और बीज की बढ़ी हुई कीमतें :

 

राज्य में उर्वरकों और बीजों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जो किसानों की उत्पादन लागत को अत्यधिक बढ़ा देती हैं। MSP में की गई 150 रुपये की बढ़ोतरी इन बढ़ी हुई कीमतों के अनुपात में बहुत कम है। महंगे उर्वरक और बीज खरीदने में किसानों को कर्ज लेना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है।

 

कर्ज का बोझ :

 

मध्यप्रदेश के अधिकांश किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनकी आय MSP पर निर्भर होती है। इन किसानों पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है क्योंकि उन्हें अपने कृषि निवेश के लिए कर्ज लेना पड़ता है। राज्य में कर्ज माफी योजनाओं के प्रभावी न होने के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। MSP में मामूली वृद्धि उनके इस कर्ज के बोझ को हल्का करने में पूरी तरह असफल साबित हो रही है।

 

सरकारी खरीद की कमजोर प्रणाली :

 

मध्यप्रदेश में सरकारी खरीद की प्रक्रिया कमजोर और धीमी है। कई बार किसान MSP पर अपनी फसल बेचने में असफल रहते हैं क्योंकि सरकारी मंडियों की पहुंच सीमित है। इसके अलावा, मंडियों में भ्रष्टाचार और देरी की वजह से किसान अपनी फसल बिचौलियों को कम कीमत पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं। MSP की मामूली वृद्धि का फायदा तब तक नहीं मिल सकता जब तक कि सरकारी खरीद की व्यवस्था को अधिक प्रभावी और पारदर्शी नहीं बनाया जाता।

 

मौसमी और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा :

 

मध्यप्रदेश के किसान अक्सर प्राकृतिक आपदाओं, जैसे बाढ़, सूखा, और पाला, का सामना करते हैं। इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण उनकी फसलें बर्बाद हो जाती हैं। वर्तमान MSP में हुई मामूली बढ़ोतरी से इन आपदाओं के प्रभाव से बचने का कोई उपाय नहीं है, और किसान फसल बीमा योजना का लाभ भी पूरी तरह से नहीं उठा पाते हैं, जिससे उनकी स्थिति और खराब हो जाती है।

 

छोटे किसानों की आय पर प्रभाव :

 

मध्यप्रदेश में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या अधिक है। उनके पास सीमित जमीन होती है और उनकी खेती की उत्पादकता भी कम होती है। MSP में मामूली बढ़ोतरी उनके लिए आर्थिक रूप से संतोषजनक साबित नहीं होती, क्योंकि उनकी आय पहले से ही कम होती है। महंगाई और बढ़ी हुई लागतों के साथ यह MSP वृद्धि उनकी वास्तविक आय में कोई खास सुधार नहीं ला पाती।

 

कृषि उपकरणों और तकनीक की कमी :

 

राज्य में किसानों के पास आधुनिक कृषि उपकरण और तकनीक की कमी है।

 

इसके परिणामस्वरूप उनकी उत्पादकता और मुनाफा सीमित रहता है। MSP मेंबढ़ोतरी तभी अधिक लाभकारी हो सकती है जब किसानों को उन्नत तकनीक और उपकरणों की मदद से उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ाने का मौका मिले। वर्तमान स्थिति में MSP में मामूली वृद्धि उनकी समस्याओं को हल करने में असमर्थ है।

 

मध्यप्रदेश के गेहूं उत्पादक किसानों की समस्याएं

 

मध्यप्रदेश के गेहूं उत्पादक किसानों की प्रमुख समस्याएं कृषि क्षेत्र की चुनौतियों और राज्य के विशेष भौगोलिक और आर्थिक परिस्थितियों से जुड़ी हुई हैं। गेहूं उत्पादन में प्रमुखता के बावजूद किसान कई समस्याओं से जूझ रहे हैं।

 

बढ़ती उत्पादन लागत

 

उर्वरक, बीज, कीटनाशक, डीजल, और सिंचाई के साधनों की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। इनपुट लागत में वृद्धि के कारण गेहूं उत्पादक किसानों का मुनाफा कम हो रहा है। MSP में मामूली बढ़ोतरी भी इस बढ़ती लागत को कवर करने में असफल साबित हो रही है।

 

सिंचाई की अपर्याप्त सुविधाएं :

 

मध्यप्रदेश में सिंचाई की पूरी व्यवस्था अब भी विकसित नहीं हो पाई है। कई इलाकों में किसान केवल मानसून पर निर्भर हैं, जबकि सिंचाई के अन्य साधन जैसे नहरें और ट्यूबवेल पर्याप्त नहीं हैं। सिंचाई की कमी के कारण किसानों की फसलें समय पर पानी नहीं मिल पातीं, जिससे उत्पादकता घट जाती है।

 

उर्वरक और खाद की कमी :

 

गेहूं उत्पादन के लिए आवश्यक उर्वरक और खाद की उचित समय पर उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती। कई बार किसान उर्वरक की किल्लत के चलते काला बाजारी में ऊंचे दामों पर खरीदने को मजबूर होते हैं, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है और उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ता है।

 

मौसमी बदलाव और प्राकृतिक आपदाएं :

 

हाल के वर्षों में मध्यप्रदेश में मौसम का मिजाज असामान्य रूप से बदलता रहा है। अनिश्चित बारिश, पाला, और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं गेहूं की फसल को बर्बाद कर देती हैं। किसानों को इन आपदाओं से बचाव के लिए कोई प्रभावी प्रणाली नहीं मिलती, जिससे उनका उत्पादन प्रभावित होता है।

 

कर्ज का बोझ :

 

उच्च उत्पादन लागत और कम आय के कारण किसानों पर कर्ज का बोझ

 

लगातार बढ़ रहा है। किसान बैंक या साहूकारों से कर्ज लेकर खेती करते हैं,लेकिन उत्पादन में असफलता या उचित मूल्य न मिलने पर उनका कर्ज चुकाना मुश्किल हो जाता है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाती है।

 

सरकारी मंडियों तक पहुंच की कमी :

 

मध्यप्रदेश में सरकारी खरीद की प्रक्रिया में कई बाधाएं हैं। सभी किसानों की मंडियों तक पहुंच नहीं हो पाती, और जो पहुंच पाते हैं उन्हें अक्सर देरी और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। इसके कारण किसान बिचौलियों को अपनी फसल कम दाम पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं।

 

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में कमी :

 

MSP में मामूली वृद्धि किसानों की उत्पादन लागत और मुनाफे के बीच के अंतर को कवर करने में असमर्थ है। गेहूं उत्पादन में लागत और मेहनत बढ़ी है, लेकिन MSP की दरें वास्तविकता से काफी कम हैं, जिससे किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पाता।

 

भंडारण की समस्याएं :

 

फसल कटाई के बाद भंडारण की उचित व्यवस्था न होने के कारण किसानों को अपनी उपज का एक बड़ा हिस्सा नुकसान झेलना पड़ता है। भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण किसान फसल को तुरंत बेचने पर मजबूर होते हैं, जिससे उन्हें उचित कीमत नहीं मिल पाती।

 

फसल बीमा योजना का प्रभावी न होना :

 

केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही फसल बीमा योजनाएँ कई बार प्रभावी साबित नहीं होतीं। प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान होने के बाद भी किसानों को समय पर मुआवजा नहीं मिल पाता या पूरी राशि नहीं मिलती, जिससे उनका वित्तीय बोझ बढ़ जाता है।

 

मध्यप्रदेश के गेहूं उत्पादक किसान इन समस्याओं का सामना करते हुए अपनी आजीविका को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उत्पादन लागत में वृद्धि, कर्ज का दबाव, प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम, और सरकारी समर्थन की कमी ने उनकी स्थिति को और जटिल बना दिया है। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी मांग करती है कि इन समस्याओं का समाधान के लिए प्रभावी नीतियां बनाई जाएं, सिंचाई सुविधाओं में सुधार हो और किसानों को बेहतर तकनीक और सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं।


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